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सींगरी का अवैध पुल बचाने हर जतन हुआ फेल, अब हाई कोर्ट को भी पता चलेगी सच्चाई

नरसिंहपुर। फर्जी किसानों के कथित सुलभ आवागमन का हवाला देकर सींगरी नदी पर रपटा के स्थान पर रात के अंधेरे में निजी स्तर पर बनाए गए अवैध हाई लेवल पुल का मामला हाईकोर्ट में है।  इसी माह की 14 फरवरी को शासन द्वारा हाई कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करेगा। इसके जरिए अब तक हुई जांच रिपोर्ट से अवैध पुल निर्माण की वस्तुस्थिति, हकीकत बयां की जाएगी। गौरलतब है कि इस मामले में हाई कोर्ट ने 31 दिसंबर 2019 को प्रमुख सचिव मप्र शासन, कलेक्टर नरसिंहपुर, नजूल अधिकारी और लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री को नोटिस जारी कर वस्तुस्थिति से अवगत कराने का निर्देश दिया था। वहीं इस मामले में कलेक्टर न्यायालय में सुनवाई जारी है।
पुल के ड्राइंग पर ये दिया जवाब
जिला दंडाधिकारी के न्यायालय में जारी सुनवाई में निजी व्यक्ति द्वारा सेतु निगम और लोक निर्माण विभाग की जांच रिपोर्ट के प्रतिउत्तर में कहा गया है कि पुल के निर्माण के दौरान साइट पर ड्राइंग मौजूद थी। जिसे उन्होंने बाद में लोक निर्माण विभाग की आवक-जावक शाखा में छोड़ दिया था। क्योंकि यहां पर उन्हें अधिकारी नहीं मिल रहे थे। लेकिन, ध्यान देने वाली बात ये है कि कथित रूप से ड्राइंग आवक-जावक शाखा में छोड़ने की कोई पावती तक निजी व्यक्ति के पास नहीं है। जबकि रपटा निर्माण कराने के लिए निजी व्यक्ति ने सिर्फ नाम व खसरा नंबर लिखकर अपूर्ण आवेदन 17 अक्टूबर 2018 को जब लोक निर्माण विभाग की आवक-जावक शाखा में दिया था, तब वे पावती लेना नहीं भूले थे। दूसरी गौर करने वाली बात ये है कि निजी व्यक्ति ने अब तक ये बात भी नहीं बताई कि आखिर पुल का ड्राइंग किस इंजीनियर या संस्था से उन्होंने तैयार कराया था। जबकि एसडीएम नरसिंहपुर, सेतु निगम के अधिकारियों ने जब मौके पर जांच की थी, तब बार-बार मांगने के बावजूद निजी व्यक्ति ने ड्राइंग उपलब्ध नहीं कराई थी। तय है कि ये ड्राइंग मामले में निजी व्यक्ति का कलेक्टर न्यायालय में दिया गया जवाब गुमराह करने के लिए है।
निजी स्तर पर फिर भी निर्माण की अनुमति नहीं
कलेक्टर न्यायालय में पेश जवाब में निजी व्यक्ति ने लोनिवि की आवक-जावक शाखा में 17 अक्टूबर 2018 के अपूर्ण आवेदन की पावती भर पेश की है। लेकिन वे इस बात का जवाब नहीं दे सके हैं कि आखिर उन्हें निजी स्तर पर हाई लेवल पुल निर्माण की अनुमति किसने प्रदान की थी। गौरतलब है कि नियमानुसार सरकारी नदी-नालों पर किसी भी तरह का रपटा, पुलिया या पुल का निर्माण लोक निर्माण विभाग की देखरेख में ही हो सकता है। इस मामले में भी यही नियम लागू था। इसके तहत पुल निर्माण का इस्टीमेट बनने के बाद निजी व्यक्ति को पुल निर्माण की लागत राशि सर्वप्रथम लोक निर्माण विभाग को जमा करानी थी। इसके बाद टेंडर प्रक्रिया व दावा-आपत्ति मंगाए जाते। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। जबकि पूर्व कलेक्टर अभय वर्मा के स्वीकृति पत्रक में साफ लिखा था कि रपटा का निर्माण लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री की निगरानी में ही होगा। एक भी शर्त का उल्लंघन होने पर पुल ढहा दिया जाएगा।
गुपचुप दिलाए ज्ञापन
कलेक्टर न्यायालय में निजी स्तर पर बनाए गए हाई लेवल पुल मामले में खुद को फंसता देख निर्माणकर्ताओं ने कथित लोगों से पुल के पक्ष में प्रायोजित इक्का-दुक्का ज्ञापन तक कलेक्ट्रेट की आवक-जावक शाखा में दिलवाए हैं। इन ज्ञापनों को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया,  अखबारों में छपने नहीं दिया गया। इसका मकसद सिर्फ इतना था कि ज्ञापन देने वालों की कहीं हकीकत का कोई पता न कर ले। हालांकि यह बात ज्यादा दिन छिप नहीं सकी। जिन लोगों ने ज्ञापन दिया है कि दरअसल उनका पुल की परिधि से एक किलोमीटर तक कोई वास्ता ही नहीं है। यह बात प्रशासन भी जान चुका है।
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नदी तट से लगकर बनाई बाउंड्रीवॉल की शिकायत
सुभाष वार्ड-किसानी वार्ड के बीच बसाई जा रही कॉलोनी के लिए निर्माणकर्ताओं द्वारा तटी तट से लगकर बनाई गई बाउंड्रीवॉल की शिकायत सीएम हेल्पलाइन समेत लिखित रूप से कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार नरसिंहपुर से की गई है। इसमें शिकायतकर्ताओं ने बताया है कि टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की गाइडलाइन और राष्ट्रीय भवन संहिता कानून के अनुसार शहरी क्षेत्र में नदी के बाढ़ स्तर से 50 मीटर दूर ही किसी भी तरह की बाउंड्रीवॉल निर्मित की जा सकती है। भले ही तट से लगी जमीन निजी स्वामित्व की क्यों न हो, लेकिन कॉलोनाइजर द्वारा तमाम नियमों का उल्लंघन करते हुए नदी के वास्तविक बहाव को बाउंड्रीवॉल बनाकर प्रभावित कर दिया गया है। इस मामले में जांच जारी है।