नरसिंहपुर: राष्ट्रकवि की रचना भारत भारती में देश के भूत, वर्तमान व भविष्य का चित्रण, युवाओं के लिए इनका दर्शन प्रेरक
नरसिंहपुर। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी की रचनाओं में राष्ट्रीयता और मानवीय विचारों की प्रमुखता है। इससे आज की युवा पीढ़ी को वाफिक कराना बेहद जरूरी हो गया है। इसे देखते हुए 3 अगस्त को मध्यप्रदेश शासन द्वारा राष्ट्रकवि की 135वीं जयंती कवि दिवस के रूप में मनाना उत्साहवर्धक है। इससे नई पीढ़ी को संघर्ष व सकारात्मकता की प्रेरणा मिलेगी। ये बात गहोई समाज की विदुषी महिला, कवियत्री शोभना मरेले ने कही है। गुप्तजी की जयंती की पूर्व संध्या पर श्रीमती मरेले ने बताया कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तरप्रदेश के झांसी के पास चिरगांव में वैष्णव परिवार के सेठ रामचरण जी कनकने व कौशल्या बाई कनकने की तीसरी संतान के रूप में हुआ था। गुप्त जी को साहित्य प्रेम विरासत में प्राप्त हुआ था। पिता कनकलतार्थ के नाम से कविता करते थे। बाल्यकाल से ही पढ़ाई में रुचि न होने के कारण शिक्षा अधूरी रही। गुप्तजी ने 12 वर्ष की उम्र में ब्रज भाषा में कविता प्रारंभ की, जो मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुई। प्रथम काव्य संग्रह रंग में भंग एवं जयद्रथ वध प्रकाशित हुई, इसके बाद साहित्य की यात्रा अनवरत रूप से चलती चली गई। गुप्तजी ने बंगाली काव्य ग्रंथ मेघनाथ वध एवं बृजागंना का अनुवाद किया। वर्ष 1914 में भारत भारती का प्रकाशन होने पर गुप्त जी की लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। महाकाव्य साकेत की रचना 1917 में की । स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस स्थापित कर पुस्तके छापना प्रारंभ किया एवं पंचवटी की रचना 1931 में की। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर जेल यात्रा भी करनी पड़ी। महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि प्रदान की। वर्ष 1952 में आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी लिट की उपाधि प्रदान की गई। आप 1952 से 1964 तक राज्यसभा सदस्य रहे। वर्ष 1953 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया एवं 1954 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म विभूषण से सम्मानित किया । 78 वर्ष की आयु में 12 दिसंबर 1964 को हृदयाघात के कारण साहित्य का सितारा अस्त हो गया । गुप्त जी ने दो महाकाव्य, 19 खंडकाव्य, काव्य गीत एवं नाटिकाएं लिखीं। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय धार्मिक एवं मानवीय विचार प्रमुखता से पाए जाते हैं। श्रीमती मरेले के अनुसार राष्ट्रकवि की प्रसिद्ध कृति भारत भारती के तीन खंड में देश का भूत, वर्तमान व भविष्य चित्रित है।