रक्षा बंधन 3 अगस्त पर बन रहा है शुभ योग, देखे शुभ मुहुर्त
3 अगस्त को पवित्र रक्षा बंधन का त्योहार है। इस बार रक्षाबंधन पर शुभ योग बन रहा है। रक्षाबंधन पर सर्वार्थ सिद्धि योग नाम का बहुत ही शुभ योग है।इसके अलावा रक्षाबंधन पर सावन महीने का अंतिम सोमवार भी है और सावन महीना इसी दिन खत्म हो जाएगा। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा सुबह 9 बजकर 28 मिनट तक रहेगी इसके बाद पूरे दिन राखी बांधी जा सकेगी। इस बार सावन पूर्णिमा पर अद्भुत संयोग इसे खास बना रहा है, जबकि सावन का आखिरी सोमवार भी पड़ रहा है। साथ ही इस साल सर्वार्थ सिद्धि और आयुष्मान दीर्घायु का शुभ संयोग बन रहा है। पूर्णिमा दो अगस्त रात 8ः36 बजे लग जाएगी जो तीन अगस्त को रात 8ः21 बजे तक रहेगी। सुबह 8ः 29 बजे तक भद्रा के कारण बहनें, भाइयों की कलाई पर राखी सुबह 8ः30 बजे से पूर्णिमांत यानी रात 8ः21 बजे तक बांध सकेंगी।
भद्रा पर शुभ कार्य
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भद्रा एक विशेष समय होता है जिसमें किसी भी तरह का शुभ कार्य शुरू नहीं किया जाता है। अच्छे मुहूर्त अथवा भद्रा रहित काल में शुभ कार्य करने से पर कार्य में सिद्धि और विजय प्राप्ति होती है। भद्राकाल में किसी भी तरह का शुभ कार्य करना अच्छा नहीं रहता है। शास्त्रों में रक्षाबंधन का पावन कर्म भद्रा रहित समय में करने का विधान है। इस कारण से इस बार 3 अगस्त को भद्रा की समाप्ति के बाद ही राखी बांधे।
सावन का अंतिम सोमवार
सावन पूर्णिमा पर स्नान.दान का भी विधान है। सावन का अंतिम सोमवार होने से रुद्राभिषेक.पूजन आदि के विधान अनुष्ठान भी पूरे किए जाएंगे। इसी दिन वैदिक ब्राह्माण श्रावणी उपाकर्म के विधान भी पूरे करेंगे। हालांकि कोरोना संकट के कारण सभी अनुष्ठान घर में ही किये जा सकेगें।।
रक्षाबंधन की कथा
- सतयुग में देवताओं.दानवों में 12 वर्ष तक युद्ध हुआ। देवता बार.बार हारते चले गए। देव गुरु बृहस्पति की आज्ञा से युद्ध रोक दिया गया। देवगुरु के आदेश पर इंद्राणियों ने इंद्र का रक्षा बंधन किया। रक्षा सूत्र के प्रभाव से देवराज इंद्र ने दैत्यों का संहार किया और देवताओं को विजय मिली। यह तिथि श्रावण शुक्ल पूर्णिंमा थी, तभी से सनातन धर्मिंयों में रक्षा बंधन पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।
- शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।
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रक्षाबंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कथा इस प्रकार है- राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
रक्षासूत्र मंत्र
- येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
- तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)”
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त.
प्रातः काल भद्रा के बाद
09ः27 से 21ः17 तक