16 करोड़ के अरहर घोटाले में 5 साल बाद भी कार्रवाई नहीं
आम आदमी पार्टी ने गाडरवारा के चर्चित कांड को लेकर सौंपा ज्ञापन
नरसिंहपुर। जवाहर कृषि उपज मंडी गाडरवारा में करीब पांच साल पहले हुए 16 करोड़ रुपये के अरहर दाल घोटाले में अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। इससे आक्रोशित आम आदमी पार्टी के नेताओं ने सोमवार को मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन डिप्टी कलेक्टर को सौंपा।
ज्ञापन में बताया गया कि वर्ष 2015-16 में समर्थन मूल्य पर गाडरवारा की दो फर्मों द्वारा किसानों से अरहर खरीदी गई थी। इसमें अनियमितताओं को लेकर कृषक संगठनों, जनप्रतिनिधियों ने तत्कालीन कलेक्टर से शिकायत की थी। एसडीएम स्तर पर हुई जांच के बाद जिला प्रशासन ने मामले में एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए थे। बावजूद इसके दोषी फमों, एजेंट, सहकारी संस्थाओं पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। जबकि इस प्रकरण के बाद की अवधि में गोटेगांव, तेंदूखेड़ा, नरसिंहपुर में 2018-19 व 2019-20 में पाई गई अनियमितताओं के चलते कर्मचारी-अधिकारियों के निलंबन से लेकर गिरफ्तारी तक की जा चुकी है। ज्ञापन आम आदमी पार्टी के जिला प्रमुख बाबूलाल पटेल की अगुवाई में सौंपा गया।
क्या है मामला
जवाहर कृषि उपज मंडी गाडरवारा में वर्ष 2015-16 के दौरान दादा दरबार प्रोडक्ट कंपनी लिमिटेड साईंखेड़ा में चीचली फारमर्स प्रोडक्ट कंपनी लिमिटेड, सहकारी समितियों को एजेंट नियुक्त कर अरहर की खरीदी की गई थी। शिकायत पर जांच करते हुए तत्कालीन नागरिक आपूर्ति निगम के व्यय प्रबंधक मुकेश सिंघई ने राजस्व निरीक्षक व पटवारियों के सहयोग से अभिलेखों की जांच में अनियमितता की पुष्टि की थी। प्रथम दृष्टया पाया गया था कि दादा दरबार कंपनी व मे. चीचली फारमर्स कंपनी सूखाखैरी द्वारा मंडी में तुअर खरीदी की गई। मे. दादा दरबार द्वारा 10152 क्विंटल कीमत करीब 9 करोड़ 53 लाख पर मंडी शुल्क करीब 19 लाख व निराश्रित शुल्क 1 लाख 89 हजार 226 रुपये अदा किया गया। इसी प्रकार चीचली की कंपनी ने 7571 क्विंटल अरहर की खरीदी की राशि 6 करोड़ 73 लाख 46 हजार 85 रुपये पर मंडी शुल्क करीब 13 लाख 47 हजार रुपये व निराश्रित शुल्क करीब 1 लाख 34 हजार रुपये का भुगतान गाडरवारा मंडी को किया था। कंपनी द्वारा बाहर से क्रय की गई दलहन में मंडी शुल्क संबंधी भुगतान का विवरण पेश नहीं किया गया। जांच में ये भी खुलासा हुआ था कि दोनों कंपनियों द्वारा खरीदी उपज कृषक विवरण के अनुसार बोए गए रकबे की तुलना में तीन गुना तक अधिक था। रिकॉर्ड में ऐसे किसानों से भी अरहर खरीदी होने का जिक्र मिला, जिन्होंने अरहर बोई ही नहीं थी। कई किसानों के नाम, पता तक गलत निकले थे। कुछ किसान परिवार ऐसे भी मिले जिनके नाम से पांच-पांच बार बिना रकबे के अरहर खरीदी की खरीदी दर्शाई गई थी।