सहकारी समिति कर्मचारियों का धरना-प्रदर्शन जारी, 9 फरवरी को बरमान में जल सत्याग्रह

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नरसिंहपुर।  मप्र सहकारिता समिति कर्मचारी महासंघ के बैनर तले जिले की समितियों, उनके संचालकों, प्रबंधकों, विक्रेताओं का धरना-प्रदर्शन जारी है। इसके चलते पिछले पांच दिन से जिले की सभी 405 उचित मूल्य की दुकानों में ताला लगा है। वहीं सहकारी कर्मचारी संघ ने अपने आंदोलन को तेज करने की घोषणा कर दी है। इसके तहत मंगलवार 9 फरवरी को बरमान में जल सत्याग्रह किया जा रहा है।
सहकारिता कर्मचारी महासंघ के जिलाध्यक्ष राजकुमार कौरव ने बताया कि प्रदेश संगठन के बैनर तले पिछली 1 फरवरी से मुख्यमंत्री समेत सहकारिता आयुक्त, कलेक्टर को ज्ञापन देने से आंदोलन की शुरुआत हुई थी। जबकि 4 फरवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल के तहत सभी राशन दुकानें बंद कर दी गईं हैं। सहकारी समितियों के प्रबंधक, विक्रेता आदि सभी जिला मुख्यालय के लोक सेवा केंद्र परिसर के पास धरना दे रहे हैं। श्री कौरव ने रोष जताते हुए कहा कि करोड़ों की वसूली कर सहकारिता को जीवित रखने वाले कर्मचारियों के प्रति प्रदेश सरकार का रवैया हैरान करने वाला है। अब तक सरकार ने उनकी मांगों पर विचार तक नहीं किया है। इसी कारण 9 फरवरी को तय कार्यक्रम के अनुसार जिले के सभी सहकारी कर्मचारी बरमान स्थित नर्मदा तट पर जाकर जल सत्याग्रह करेंगे। प्रदेश सरकार की सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना की जाएगी।
तटों की करेंगे सफाई
सहकारिता कर्मचारी संघ के जिला उपाध्यक्ष आशीष नेमा, प्रांतीय प्रवक्ता मो. शफी खान और जिला सचिव शशि महाराज ने बताया कि बरमान में जल सत्याग्रह के पूर्व आधा घंटे तक सभी आंदोलनकारी तटों की सफाई करेंगे। मेले के कारण यहां हुई गंदगी को साफ किया जाएगा। घाट पर आने वाले श्रद्धालुओं को नर्मदा में गंदगी न फैलाने का आह्वान होगा।
 20 करोड़ का नुकसान
  जिले में रोजाना करीब 4 करोड़ रुपये की ऋण वसूली औसतन होती थी लेकिन पिछले पांच दिन में ये आंकड़ा शून्य पर पहुंच गया है। बैंक को करीब 20 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। जैसे-जैसे हड़ताल लंबी खिंचेगी घाटे का ग्राफ भी तेजी से बढ़ेगा, इसे लेकर केंद्रीय बैंक के अधिकारी भी अब चिंतित नजर आने लगे हैं।
  शासकीय उचित मूल्य की दुकानों पर तालाबंदी का सबसे बुरा असर गरीब हितग्राही पर दिखने लगा है। सस्ता राशन न मिलने के कारण हितग्राहियों को महंगे दाम देकर निजी दुकानों से जरूरत का सामान खरीदना पड़ रहा है। वहीं भयावह होती इस समस्या के निदान के लिए जिला प्रशासन के पास अब भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है।
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