विशेष संवाददाता
भोपाल/नरसिंहपुर। कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के त्यागपत्र देने के बाद कमलनाथ के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश की कांग्रेसनीत सरकार के संकट में जरूर आ गयी है। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इस्तीफा स्वीकार न करने के कारण भाजपा को इसका फिलहाल लाभ नहीं मिल सका है। हालांकि सरकार बनाने के लिए उतावले भाजपा नेताओं ने 16 मार्च को सदन में कमलनाथ सरकार पर शक्ति प्रदर्शन करने दबाव बनाने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन ऐन वक्त कोरोना वायरस ने अप्रत्याशित रूप से उनकी मंशा पर पानी फेर दिया। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा कोरोना वायरस के खतरे के मद्देनजर जारी किया गया अलर्ट कमलनाथ सरकार के लिए तात्कालिक संकट भरे हालातों से उबरने का मौका दे गया। शुक्रवार 13 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने सदन की कार्रवाई 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी। इस्तीफा देने वाले कांग्रेस विधायकों का विस् अध्यक्ष के सामने पेश न होना कांग्रेस के लिए राहत भरा है । विश्लेषकों के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष संबंधित विधायकों को पुनः पेश होने का नोटिस जारी करेंगे। इस प्रक्रिया में कमलनाथ सरकार को वक्त मिलेगा। यद्यपि भाजपा नेता सरकार को समय नहीं देना चाहते, क्योंकि उन्हें इस बात का अंदेशा है कि कहीं नाराज विधायक फिर से कांग्रेस का दामन न थाम लें। लेकिन उनकी ये मंशा विधानसभा अध्यक्ष की संवैधानिक शक्तियों के आगे फिलहाल दम तोड़ती नजर आ रही है।
मालूम हो कि मध्यप्रदेश विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं, इनमें से वर्तमान में दो खाली हैं। इनमें से कांग्रेस के विधायकों की संख्या 114 एवं भाजपा के 107 हैं, जबकि कांग्रेस को समर्थन दे रही बसपा के दो विधायक, सपा का एक एवं चार निर्दलीय विधायक हैं। 22 विधायकों के कथित इस्तीफे के बाद कांग्रेस के 92 विधायक हैं। निर्दलीय व सपा-बसपा को मिलाकर ये आंकड़ा 99 पर ठहरता है।