नरसिंहपुर: औषधियों के जानकारों की वन विभाग को सरगर्मी से तलाश, सौंपना है उन्हें ये जिम्मेदारी
नरसिंहपुर। जिले के वन क्षेत्रों में बिखरी पड़ी बहुमूल्य प्राकृतिक औषधियों की जानकारी रखने वाले वैद्यों-जानकारों की वन विभाग को सरगर्मी से तलाश है। इस तलाश का मुख्य मकसद बरमान सतधारा के प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र को प्रदेश में फिर स्थापित करना है। इसके लिए वन मंडलाधिकारी कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं। इस केंद्र की जिम्मेदारी इन जानकारों को इस केंद्र की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
दरअसल मामला ये है कि करीब 12 साल पहले वन विभाग के तत्कालीन रेंजर मथुरा प्रसाद रिछारिया ने वनांचल में मौजूद आयुर्वेदिक औषधियों के संग्रहण और इनका प्रयोग विभिन्न् बीमारियों में करने के मकसद से सतधारा के पास प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना की थी। चूंकि श्री रिछारिया स्वयं औषधियों के जानकार और इसकी तलाश में उनकी व्यक्तिगत रुचि थी तो उन्होंने बरमान सतधारा के पास प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना प्रस्ताव अपने विभाग को दिया। तत्कालीन अधिकारियों को उनके सामर्थ्य और प्रस्ताव पर भरोसा रहा तो उन्होंने भी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के रूप में जिले का पहला आयुर्वेदिक अस्पताल बनाने के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को स्वीकार कर लिया। इसके बाद वन विभाग द्वारा करीब दस लाख रुपये खर्च करते हुए यहां पर वर्ष 2008 में प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र का ग्रामीण परिवेश को ध्यान में रखते हुए भवन बनवाया। पेयजल टंकी के साथ-साथ औषधीय पौधों से युक्त बगीचा आदि का निर्माण कराया। इसे पवित्र वन क्षेत्र का भी नाम दिया गया। इसके बाद यहां पर वनांचल के क्षेत्रों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों आदि का संग्रह करना शुरू हुआ। जब तक मथुरा प्रसाद रिछारिया यहां तैनात रहे तब तक ये केंद्र जिले की सीमा से निकलकर प्रदेशभर में चर्चित रहा।
विभागीय अधिकारियों ने भी अपने इस केंद्र और औषधियों का प्रचार-प्रसार किया। सरकारी स्तर पर कई औषधी मेले भी आयोजित किए गए। करीब 6-7 साल तक ये प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र बेहतर तरीके से संचालित रहा लेकिन जैसे ही श्री रिछारिया सेवानिवृत्त हुए केंद्र की बदहाली का दौर भी शुरू हो गया। वर्ष 2015 के बाद एक तरह से ये चिकित्सा केंद्र अनाथ हो गया। केंद्र के परिसर की हरियाली देखरेख के अभाव में सूख गई। पशुपालकों को मौका मिला तो उन्होंने भवन परिसर में अतिक्रमण कर यहां मवेशी बांधना शुरू कर दिए। कंधे की थाप यहां लगाई जाने लगी।
जानकारों का अभाव बड़ी समस्या
जिला वन मंडलाधिकारी महेंद्र सिंह उइके के अनुसार मथुरा प्रसाद रिछारिया ने इस काम को व्यक्तिगत रुचि लेकर शुरू किया था। चूंकि वे औषधियों के जानकार भी थे, अतएव जब तक वे रहे तब तक कोई दिक्कत नहीं आई। विभाग के कर्मचारियों का उन्हें भरपूर सहयोग मिला। इनकी सेवानिवृत्ति के बाद विभाग में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं रहा जिसे वनोषधि के बारे में अधिक जानकारी हो। किसी कर्मचारी ने भी श्री रिछारिया की तरह रुचि इस काम में व्यक्तिगत रुचि नहीं ली।
समिति बनाने के होंगे प्रयास
बरमान सतधारा स्थित प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र को पुन: स्थापित करने के लिए जिला वनमंडलाधिकारी महेंद्र सिंह उइके ने एक विशेष कार्ययोजना बनाई है। श्री उइके अनुसार चूंकि वर्तमान में भी वन विभाग में औषधियों का जानकार उपलब्ध नहीं है, इसलिए हम अब स्थानीय वैद्यों-जानकारों की सेवाएं लेने की योजना बना रहे हैं। उनके अनुसार हमारा प्रयास है कि सबसे पहले बरमान समेत आसपास के वनांचल में रहने वाले औषधियों के जानकारों की तलाश की जाए। इसके बाद इनकी एक समिति बनाई जाएगी, जिसे वन विभाग के नियंत्रण में प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के संचालन की जवाबदेही दी जाएगी। इसके लिए अधीनस्थों को निर्देशित कर दिया गया है। उम्मीद है कि जल्द ही ये काम हो जाएगा और विभाग के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पुन: स्थापित कर हम वनोषधियां का संरक्षण कर पाएंगे।