रमाकांत धाकड़
नरसिंहपुर। मध्यप्रदेश भाजपा विधायक दल की बैठक सोमवार शाम को भोपाल में हुयी। पूर्वकालिक मान्यता के अनुरूप शिवराज सिंह चौहान ने आख़िरकार लगातार चौथी बार सीएम की शपथ ले ली । आखिरकार एमपी भाजपा की सियासत के चाणक्य केंद्रीय मन्त्री नरेंद्र तोमर जिनका की सीएम बनना तय माना जा रहा था ,अचानक कैसे पांसा पलटकर हाईकमान को शिवराज के नाम पर राजी कर लिया ?
इस बदलाव से शिवराज को सीएम बनने से रोकने में लगे भाजपा के कई महत्वाकांक्षी और अपने को निर्णायक मान बैठे नेता अब हतप्रभ है । उन्हें समझ ही नही आया कि कैसे तोमर ने सीएम पद के उम्मीदवारों को इस दौड़ से बाहर किया और फिर अपने दोस्त को ही सीएम की शपथ दिलाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया ।
सूत्रों की माने तो यह तोमर की सोची समझी रणनीति थी । विधानसभा चुनाव के पहले से ही हाईकमान प्रदेश की कमान किसी नए नेतृत्व के हवाले करना चाहता था, और प्रदेश के कई बड़े नेता शिवराज की जगह ख़ुद को सीएम की कुर्सी पर बिराजमान देंखने के सपने पालने लगे थे । यही वजह है कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद लाख प्रयासों के बावजूद शिवराज सिंह नेता प्रतिपक्ष नही बन सके । उनकी जगह गोपाल भार्गव को इस पद पर बिठा दिया गया । पार्टी हाईकमान लगातार शिवराज को केंद्रीय राजनीति में ले जाने की कोशिश करता रहा इसी योजना के तहत उन्हें पार्टी के सदयता अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी बनाकर उनका मुख्यालय दिल्ली कर दिया गया । लेकिन उन्होंने भोपाल नही छोड़ा । यहां की पार्टी की गतिविधियां उंन्होने अपने आसपास ही रखी । भार्गव के नेता प्रतिपक्ष होने के बावजूद प्रदेश की हर गतिविधि पर सक्रीय शिवराज सिंह ही नज़र आये ।
होली के पहले जब ऑपरेशन लोटस की शुरुआत हुई तब इसमें शिवराज शामिल नही थे, लेकिन इसकी भनक लगते ही शिवराज सिंह ने इसमें भूपेंद्र सिंह की एंट्री करा दी और फिर एक हफ्ते में ही यह ऑपरेशन शिवराज सिंह के आसपास घूमने लगा ।
जब ऑपरेशन सफलता के नज़दीक पहुंचा तो पार्टी में सीएम की कुर्सी के लिए अनेक दावेदार स्क्रीय हो गए । कैलाश विजयवर्गीय,नरोत्तम मिश्रा थावर चंद गहलौत वी डी शर्मा के नाम प्रवलता से आने लगे और संकेत मिलने लगे कि संघ और आलाकमान बदलाव चाहता है ।
अब तोमर ने फेंका पांसा
इस मुहिम की मंशा भांपकर तोमर सक्रीय हुए लेकिन मौन रहकर काम करने के शौकीन तोमर ने गोटियां बिछाना शुरू किया । हाल में ही में कांग्रेस छोड़ भाजपा में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया को राय शुमारी के शामिल कराया और उंन्होने तोमर का नाम सुझाया । शिवराज ने भी कहा तोमर बदलाव में श्रेष्ठ रहेंगे ।
इस समय सत्ता हो पार्टी की राजनीति में श्री तोमर का कद सिरमौर है । तोमर का नाम आते ही बाकी दावेदार ठिठकने लगे और तोमर लगातार सीएम की दौड़ में शामिल होने से इनकार करते रहे ।
सूत्रों की माने तो वे इस दौड़ में थे ही नही यह तो शिवराज सिंह को सीएम बनवाने की उनकी रणनीति का हिस्सा था । उंन्होने मास्टर गोल टैब खेला जब भाजपा अविश्वास प्रस्ताव के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची । वहां भाजपा को ओर से पार्टी ले प्रदेश अध्यक्ष ,नेता प्रतिपक्ष या सचेतक की तरफ से नही याचिका शिवराज सिंह की तरफ से लगाई थी । सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे दिन ही फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया जिसके चलते कामलनाथ सरकार टेस्ट से पहले ही ढह गई ।
इसके बाद शिवराज ने भोपाल में मोर्चा संम्भाला और तोमर ने दिल्ली में । यहां तक कि कांग्रेस के बागी विधायकों को भाजपा में शामिल कराने का जो आयोजन पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में हुआ और उसमें शिवराज को छोड़कर पार्टी के सभी बड़े नेता शामिल थे । जब कांग्रेस के बागी भाजपा की सदस्यता ले रहे थे तब शिवराजसिंह कामचलाऊ सीएम कमलनाथ के घर चाय पी रहे थे । अटकलें साफ थी प्रदेश का सीएम तोमर बनेंगे ।
लेकिन श्री तोमर ने रणनीति के तहत पहले तो प्रदेश के अन्य दावेदारों को दौड़ से बाहर का स्वयं का नाम निर्विवाद शीर्ष पर पहुचाया और उसके बाद हाईकमान को बताया कि इस समय शिवराज सिंह की ताजपोशी क्यों जरूरी है । कारण गिनाए ,एक- 25 उप चुनाव होना है जिनमे जीत ही भाजपा सरकार का भविष्य तय करेगी । शिवराज पार्टी के इकलौते पॉपुलर चेहरा है जिनका जनता और कार्य कर्ताओ से सीधा संपर्क है जिसकी अभी पार्टी को दरकार है । दो – प्रदेश में तत्काल एक्टिव हो जाने वाली सरकार चाहिए और यह शिवराज दे सकते है क्योंकि पंद्रह साल सीएम रहने के कारण उनका जमा जमाया प्रशासनिक सेट अप है । तीन- अभी जो विधायक है उनमें से अस्सी फीसदी शिवराज सिंह के समर्थक है । तोमर आज सुबह पार्टी के निर्णायकों को अपनी राय से संतुष्ट करा सके और अंततः दोपहर में घोषणा हुई कि शाम को ही विधायक दल की बैठक हो जिसमें शिवराज सिंह के नाम पर मुहर लगे और तत्काल राज्यपाल को बहुमत की चिट्ठी सौंपकर उनसे सीएम पद की शपथ दिलाई जाए ।