महेंद्र सिंह कौरव
सामाजिक कार्यकर्ता नरसिंहपुर
पर्यावरण का स्वच्छ एवं सन्तुलित होना मानव सभ्यता के अस्तित्व
के लिए आवश्यक है। पाश्चात्य सभ्यता को यह तथ्य बीसवीं शती के उत्तारार्ध्द में समझ में आया है, जबकि भारतीय चिंतन ने इसे वैदिक काल में ही अनुभव कर लिया था। हमारे ऋषि-मुनि जानते थे कि पृथ्वी, जल, अग्नि, अन्तरिक्ष तथा वायु इन पंचतत्वों से ही मानव शरीर निर्मित है-
पंचस्वन्तु पुरुष आविवेशतान्यन्त: पुरुषे अर्पितानि।1
उन्हें इस तथ्य का ज्ञान था कि यदि इन पंचतत्वों में से एक भी दूषित हो गया तो उसका दुष्प्रभाव मानव जीवन पर पड़ना अवश्यम्भावी है। इसलिए उन्होंने इसके सन्तुलन को बनाए रखने के लिए प्रत्येक धार्मिक कृत्य करते समय लोगों से प्रकृति के समस्त प्रमुख अवयवों को संरक्षित और स्थापित रखने की शपथ दिलाई जाती रही है
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति: पृथिवी शान्ति राप: शान्ति रौषधय: शान्ति।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा शान्तिर्ब्रह्मं शान्ति: सर्वशान्तिदेव शान्ति: सामा शान्तिरेधि।2
अत: स्पष्ट है कि यजुर्वेद का ऋषि सर्वत्र शान्ति की प्रार्थना करते हुए मानव जीवन तथा प्राकृतिक जीवन में अनुस्यूत एकता का दर्शन बहुत पहले कर चुका था। ऋग्वेद का नदी सूक्त एवं पृथिवी सूक्त तथा अथर्ववेद का अरण्यानी सूक्त क्रमश: नदियों, पृथिवी एवं वनस्पतियों के संरक्षण एवं संवर्धन की कामना का संदेश देते हैं। भारतीय दृष्टि चिरकाल से सम्पूर्ण प्राणियों एवं वनस्पतियों के कल्याण की आकांक्षा रखती आई है। ‘यद्पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे’ सूक्ति भी पुरुष तथा प्रकृति के मध्य अन्योन्याश्रय सम्बन्ध की विज्ञानपुष्ट अवधारणा को बताती है।
स्वार्थ साधना की आंधी में हम अपने मूल चिंतन से भटक गए। बक्स्वाहा छतरपुर जिले का वन क्षेत्र भविष्य में हीरे की खदान के रूप में परिणित हो जाएगा। यूं तो मध्य प्रदेश के पन्ना जिले को हीरों की खान माना जाता है। लेकिन पन्ना से सटे छतरपुर जिले के बक्सवाहा जंगलों में देश में हीरों का सबसे बड़ा भंडार मिलने का दावा किया जा रहा है। इन जंगलों में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे होने का अनुमान लगाया गया है जो पन्ना से 15 गुना बताए जा रहे हैं। लेकिन इन हीरों को पाने के लिए वहां लगे बहुमूल्य पेड़ों की बलि देनी होगी जिसके लिए 382.131 हेक्टेयर जंगल खत्म करने की तैयारी की जाने लगी है।
छतरपुर के बक्सवाहा में बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत 20 साल पहले एक सर्वे शुरू हुआ था। दो साल पहले प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की थी जिसे आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने खनन खरीदा था। हीरा भंडार वाली 62.64 हेक्टेयर जमीन को मध्य प्रदेश सरकार ने इस कंपनी को 50 साल के लिए लीज पर दिया है
लगभग सवा दो लाख सागौन, केम, जामुन, बहेड़ा, पीपल, तेंदू, अर्जुन आदि के वर्षो पुराने वृक्षो की श्रृंखला का शोषण चंद नश्वर राजस्व की लालसा में जबकि परिस्थितियां सामने है। कोरोना काल में ऑक्सीजन के महत्व को जान चुका है संसार । धरती प्यासी होती जा रही है, तापमान बढ़ रहा है ग्लेशियर पिघल रहे हैं , नदियां सूख रहीं है, गाँव के गाँव पानी की कमी के चलते खत्म हो रहे हैं , भूमिगत जल का स्तर अप्रत्याशित रूप से नीचे जा चुका है। पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के संरक्षण के लिए चिंतित और प्रयासरत है तब हीरे की खदान के लिए वर्तमान में हीरे से भी मूल्यवान वृक्षो का ह्रास लाभ का सौदा नही है।
बुंदेलखंड वैसे भी पानी के लिए संघर्ष करता रहा है । ऐसा नही की पेड़ काटने से सिर्फ ऑक्सिजन और पानी की कमी होगी। वहां विचरने वाले वन्य जीवो का घर भी तो मिटेगा। न जाने कितने जीव अपने घर से बेघर होंगे। परिस्थिक तंत्र का कितना भयानक नुकसान होगा।
एक स्वस्थ पेड़ एक दिन में 230 लीटर ऑक्सीजन देता है और वर्ष भर में 20 किलो धूल और 20 टन के लगभग मनुष्य द्वारा उत्सर्जित कार्बन सोखता है। इस लाभ की भरपाई बक्सवाहा से निकलने वाले हीरो को बेच कर भी संभव नही।
वर्तमान समय में इस प्रोजेक्ट को लगभग 20 वर्षो के लिए स्थगित कर देना चाहिए और प्रस्तावित क्षेत्र से 3 गुने क्षेत्र को आरक्षित वन आच्छादित करने के उपरांत इस दिशा में पर्यावरणीय अनुकूलता को देखते हुए निर्णय करना चाहिए।
पहले जंगल बनाए
उसके बाद मिटाने की सोचे सरकार।
जीवन आवश्यक है रत्न आभूषण नहीं।
यदि जीवन ही नही रहेगा तो हीरे का मूल्य क्या ?
सर्वे सुखिनः संतु