कथा सत्संग के अंतिम दिन श्रीकृष्ण-सुदामा की जीवंत झांकी बनाई गई जिसमें श्रीकृष्ण-रुकमणि और सुदामा बने बच्चों ने भावपूर्ण अभिनय से प्रसंग को जीवंत बनाया और कथा सुनने आए श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। प्रसंग में सुदामाजी का दीनभाव के साथ द्वारका पहुंचने और फिर राजमहल में श्रीकृष्ण-रुकमणिजी द्वारा सुदामाजी के पैर धुलाने, सुदामा द्वारा मित्र को भेंट करने पोटली में साथ लाए गए तंदुल को श्रीकृष्ण द्वारा खाने की कथा का रहस्य भी कथा वाचिका ने विस्तार से सुनाया। परीक्षित मोक्ष की कथा में बताया गया कि श्रीमद् भागवत कथा को सुनने के बाद राजा परीक्षित के अंदर मृत्यु को लेकर जो भय था वह दूर हो गया और जीवन मंे भक्ति और भगवान का महत्व समझ आया। प्रत्येक जीव का कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन का लक्ष्य भगवत शरण को बनाए ताकि जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर वह भगवान के श्रीचरणों में स्थान पा सके, भक्ति के माध्यम से अपनी मुक्ति का मार्ग खोज सके। कथा सत्संग के दौरान श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से भजन-संकीर्तन किया और जयकारे लगाए। कथा समापन पर हवन-पूजन किया गया। आज मंगलवार को भंडारा कर प्रसाद वितरण किया जाएगा।