आनंद श्रीवास्तव, नरसिंहपुर।
ब्रह्ममलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य व ‘ज्योतिषपीठ के उत्तराधिकारी नए शंकराचार्य अविमुक्तेश्र्वरानंद अपने अध्ययनकाल के दौरान छात्र नेता भी रह चुके हैं। वे एक बार विश्र्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष और एक बार अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए थे।
शिक्षक बैठाते थे कुर्सी पर
अविमुक्तेश्र्वरानंद (उमाशंकर पांडे) का जन्म प्रतापगढ़ उप्र के बाह्मणपुर गांव में 15 अगस्त 1969 मंे हुआ था। इनके पिता पं. रामसुमेर पांडे व मां श्रीमती अनारा देवी थीं। परिवार के करीबी बताते हैं कि जब ये कक्षा तीसरी में पहुंचे तो इनकी कुशाग्र बुदि्ध को देखते हुए शिक्षक इन्हें अपनी कुर्सी पर बैठाकर पढ़ाने लगे थे। प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उमाशंकर ने गुजरात के बड़ौदा सि्थत महाराजा सायाजी राव विवि में मध्यमा (12वीं) तक की शिक्षा अरि्जत की। यहां से वे ब्रह्मलीन शंकराचार्य जी के संपर्क में आए। जिनके सानिध्य में काशी जाकर संस्कृत अध्ययन करने लगे। जहां स्वामी करपात्री को उनके अंतिम समय में उन्होंने रामचरितमानस पढ़कर सुनाया।
1993 से 1996 तक छात्र नेता रहे
परमहंसी गंगा आश्रम के ब्रह्मचारी अचनालंद सरस्वती के अनुसार वाराणसी के संपूर्णनंद संस्कृत विश्र्वविद्यालय में वर्ष 1993 से 1996 तक वे छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष फिर अध्यक्ष पद पर काबिज हुए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ओर से वे चुनाव लड़े थे। इस विवि से उन्होंने नव्य व्याकरण से आचार्य तक की पढ़ाई पूरी की, शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।
शोध पूरा किया लेकिन नहीं ले सके पीएचडी
संपूणरनंद विवि में भट्टोजी दीक्षित कृत शब्दकौस्तुभ पर उमाशंकर पांडे ने अपना शोध भी पूरा किया, लेकिन वर्ष 1999 में संन्यासी जीवन में प्रवेश के कारण पीएचडी की उपाधि नहीं ले सके।
पहले आनंदस्वरूप, फिर अविमुक्तेश्र्वरानंद बने
वर्ष 2000 में ब्रह्मलीन शंकराचार्य ने प्रयागराज में उमाशंकर को नैषि्ठक ब्रह्मचारी की शिक्षा दी। जिसके बाद इन्हें आनंदस्वरूप नाम मिला। वर्ष 2003 में जब इन्हें दंड दीक्षा दी गई तो इनका नाम स्वामी अविमुक्तेश्र्वरानंद हो गया। श्रीविद्या साधना की परंपरा में सबसे बड़ी पूर्णाभिषेक दीक्षा इन्हें वर्ष 2010 में मिली।
इन आंदोलनों/ स्थानों में अग्रणी
- रामसेतु तोड़ने के आदेश के विरुद्ध अविमुक्तेश्र्वरानंद ने रामसेतु रक्षा आंदोलन चलाया। न्यायालय में याचिका भी दायर की।
- श्रीराम जन्मभूमि मुकदमे को इन्होंने पुनरुद्धार समिति उपाध्यक्ष रहते हुए न्यायालय में लड़ा। विशेषज्ञ गवाह के रूप में इन्होंने कई शास्त्रीय प्रमाण न्यायालय के समक्ष रखे। मुकदमे के निर्णय में अविमुक्तेश्र्वरानंद का उल्लेख कई जगह न्यायधीशों ने किया।
- चारों शंकराचार्यो, पांच वैष्णवाचार्यो व 13 अखाड़ों के रामालय न्यास के सचिव रहे हैं।
- गंगा की निर्मलता के लिए काशी के चितरंजन पार्क पर चारों पंथों को लेकर अविमुक्तेश्र्वरानंद ने ऐतिहासिक धरना दिया था। वर्ष 2012 में गंगा तपसि्वयों द्वारा अन्न-जल का त्याग कराकर धरने का संचालन किया। गंगा को राष्ट्र नदी घोषित कराई।
- मंदिर बचाओ आंदोलन के प्रणेता रहे। काशी समेत देशभर में मंदिर व मूरि्तयों को सरकारों द्वारा तोड़ा गया, जिसका उन्होंने विरोध किया। 12 दिनों का पराक व्रत (केवल जल पीते हुए) किया।
- वर्तमान में 10 हजार बच्चों के एक जगद्गुरुकुलम् के निमरण की योजना है जिसमें बच्चों को नि:शुल्क अन्न-वस्त्रादि देकर अध्यापन कराया जाएगा।