भटकते रहे मरीज
तय घोषणा के अनुसार गुरुवार सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक जिला अस्पताल समेत जिलेभर के सामुदायिक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पदस्थ पूर्णकालिक, संविदा चिकित्सकों ने पैन डाउन विरोध किया। इस दौरान न तो उन्होंने ओपीडी में आ रहे मरीजों की जांच की, न ही वार्डो व इनडोर राउंड पर ही निकले। आईपीडी, ऑपरेशन, पठन-पाठन, एमएलसी से भी उन्होंने इस अवधि में दूरी बनाए रखी। इसके कारण अस्पताल में पहुंचे गंभीर बुखार, दर्द आदि से पीडि़त मरीज व उनके परिजन बेचैन रहे। वे यहां-वहां भटकते रहे, शिकवा-शिकायतें, आग्रह करते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कुल मिलाकर अस्पताल की समूची व्यवस्था नर्सिग स्टाफ के भरोसे अगले दो घंटे तक चलती रही। बता दें कि सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक का समय पीक होता है। इसमें सवरधिक भीड़ पड़ती है। दोपहर 12 बजे के बाद जब चिकित्सक अपने-अपने चैंबर में पहुंच तो मरीजों की लंबी-लंबी कतारें लग गई। सबसे ज्यादा दिक्कतें महिलाओं, बुजुर्गो व बच्चों को हुई, जो विभिन्न रोग का इलाज कराने पहुंचे थे।
बातचीत नहीं तो संकट बढ़ेगा
महासंघ के पदाधिकारियों के अनुसार प्रदेशस्तरीय आह्वान पर जिले में करीब 175 चिकित्सक आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि प्रदेश सरकार उन्हें गुरुवार रात या शुक्रवार सुबह वातर के लिए आमंत्रित करती है तो प्रदेश पदाधिकारी उग्र आंदोलन को स्थगित करने को लेकर कोई फैसला ले सकते हैं। फिलहाल रात 10 बजे तक इस तरह के आदेश या बातचीत संबंधी जानकारी नहीं थी। इसलिए चिकित्सक मानकर चल रहे हैं कि 17 फरवरी से उन्हें सामान्य से लेकर आपातकालीन सेवाओं से दूर रहना है। सभी जिला अस्पताल परिसर में टेंट-माइक के साथ प्रदर्शन करेंगे। महासंघ से जुड़े डॉ. जीपी भनारिया के अनुसार जिले के सरकारी अस्पतालों में करीब 175 चिकित्सक आंदोलन में शामिल हैं। उनके अनुसार लंबे समय से वे शासन से अपनी चुनिंदा समस्याओं को दूर करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इसकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वे अपने अधिकार की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह आंदोलन सरकार का चिकित्सकों के हितों के प्रति उदासीनता, न्यूनतम संसाधनों में कार्य करवाने की नीति (मानव व अन्य संसाधन) और चिकित्सकों के प्रति असंवेदनशीलता के विरुद्ध चिकित्सक महासंघ का बिगुल है। उन्होंने कहा कि आंदोलन की सफलता, मप्र व देश में चिकित्सकों का भविष्य तय करेगा।
इनका कहना है
जिले के सभी आयुष अधिकारियों और राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के विशेषज्ञों की तैनाती की गई है। उम्मीद है कि शुक्रवार-शनिवार को शासन स्तर पर वार्ता शुरू हो, जिससे संकट का हल निकल सके।
डॉ. प्रदीप धाकड़, जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
तबादले व पीजी पर जाने के कारण इनकी संख्या कम हो गई है। जितने भी हैं वे आयुष चिकित्सक जिला अस्पताल व करेली विकासखंड की ओपीडी मंे अपनी सेवाएं देंगे।
डॉ. सुरत्ना चौहान, जिला आयुष अधिकारी