नरसिंहपुर: रेमडेसिविर इंजेक्शन का विकल्प है प्लाज्मा, स्वस्थ हुए कोरोना मरीज भी बचा सकते हैं दूसरों की जान
नरसिंहपुर। जिले में कोरोना संक्रमित-संदिग्ध मरीजों की संख्या रोज बढ़ रही है। कई मामले तो ऐसे हैं जो अत्याधिक गंभीर होने के कारण उन्हें रेमडेसिविर देना बेहद जरूरी है। इसके अभाव में उनकी जान भी जा रही है। बावजूद इसके रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं हो पा रही है। इंजेक्शन की मारामारी और किल्लत को देखते हुए अब जिले के युवा विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. अभिजीत नीखरा ने प्लाज्मा डोनेशन पर जोर देना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि पूर्व में कोरोना से स्वस्थ हुए मरीज अपने प्लाज्मा से अन्य संक्रमितों की जान बचाकर उनकी मदद कर सकते हैं।
डॉ. अभिजीत नीखरा ने बताया कि ऐसे व्यक्ति जिन्हें पहले कोरोना हुआ था लेकिन इलाज के बाद वे पूरी तरह से ठीक हो गए हैं। ऐसे मरीजों में एंटीबॉडी व प्लाज्मा अन्य गंभीर मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसके लिए स्वस्थ मरीज को अपना ब्लड ग्रुप और शरीर में एंटीबॉडी कितने प्रतिशत बनी है, इसे चेक करवाने की भर जरूरत है। इस प्लाज्मा को जबलपुर-भोपाल के लैबों में जाकर प्राप्त किया जा सकता है। इसका खर्चा भी रेमडेसिविर इंजेक्शन से कम आता है और ये इंजेक्शन के मुकाबले कई गुना अधिक कारगर भी है। डॉ. नीखरा ने जिला प्रशासन से आग्रह किया है कि वह अब तक जिले में कोरोना से ठीक हो चुके लोगों की एक सूची तैयार करे। इनसे संपर्क कर उन्हें प्लाज्मा डोनेशन (दान) करने के लिए प्रेरित करे। इसके अलावा डॉ. अभिजीत ने जिले के जागरूक लोगों से भी इस तरह का एक ग्रुप तैयार करने का आग्रह किया है ताकि भविष्य में विकट होती स्थिति से बचा जा सके। प्लाज्मा देने व लेने वाले को भी शारीरिक रूप से कोई हानि नहीं होती है।
कैसे तैयार होता है प्लाज्मा: जिस तरह एक व्यक्ति रक्तदान करता है, ठीक उसी तरह प्लाज्मा का दान भी होता है। हालांकि इस प्रक्रिया में खून नहीं निकाला जाता। बल्कि विशेष तरह की पैथोलॉजी में मरीज की नसों से मशीन में खून लाकर उससे प्लाज्मा को अलग किया जाता है। इसके बाद खून पुन: दानदाता के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है। प्लाज्मा तैयार होने में करीब 40-45 मिनट का वक्त लगता है। एक बार प्लाज्मा देने के बाद व्यक्ति तीन माह बाद पुन: प्लाज्मा दान करने के लिए फिट हो जाता है।