नरसिंहपुर जिले में भारतीय नर बुलफ्रॉग से भरा तालाब बना कौतूहल का केन्द्र
नरसिंहपुर जिले के आमगांव में एक तालाब में अचानक पीले नीबू रंग के मेंढकों की उपस्थिति स्थानीय लोगों के कौतूहल और आकर्षण का केन्द्र बन गया। यहां बड़ी संख्या में अचानक बहुत से पीले मेंढक दिखे जिनके गले में गहरे नीले रंग की गुब्बारे की आकृति (वोकल सेक) उनकी सुंदरता में चार चांद लगा रही थी। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह भारतीय नर बुलफ्रॉग है, जो अक्सर प्रजनन काल में अपना रंग बदलकर चमकीले पीले रंग के हो जाते है।
सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक जीतेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि मध्यप्रदेश में यह मेंढक मानसून के दौरान कभी-कभी देखे जाते हैं। उन्होंने तकरीबन 6-7 साल पहले सतपुड़ा टाईगर रिजर्व में इन्हें देखा था। पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक रवीन्द्र सक्सेना ने बताया कि यह मेंढक सामान्य रूप रंग के ही होते है परंतु मानसून में प्रजनन काल के दौरान मादा मेंढक को रिझाने इनके पिगमेंट का रंग हल्दी जैसा पीला हो जाता है। वहीं इनके गले की वोकल सेक भी गहरे नीले रंग की हो जाती है। यह नजारा भारत के अलावा बॉग्लादेश, म्यामार पाकिस्तान में भी कहीं-कहीं दिखता है। भारत में जहां कम वर्षा होती है, वहां कभी-कभी यह नजारा देखने को मिल जाता है। इस साल नरसिंहपुर में काफी कम वर्षा हुई है।
जैव विविधता बोर्ड के सदस्य श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि कुछ दिनों बाद यह वापस पीले रंग से सामान्य रंग में आ जाते है। इंडियन बुल फ्रॉग भारत के तालाब, पोखर, नाले आदि में पायी जाने वाली आम प्रजाति है। कई बार कम वर्षा और तापमान बढ़ने वाले इलाकों में यह आम तौर पर गहरे हरे रंग के मेंढक प्रजनन काल में गहरे पीले रंग का रूप धारण कर लेते हैं। भारतीय बुलफ्रॉग अपना ज्यादातर समय जमीन पर भोजन की तलाश बिताते हैं। जो उनके मुँह में समा सके ऐसी किसी भी चीज जैसे अन्य मेंढक, चूहे, छोटे पक्षी, साँप आदि को खाते हैं।
उल्लेखनीय है कि मेंढक पृथ्वी पर ऐसे पहले उभयचर माने जाते हैं, जो जमीन और जल दोनों में रहकर कीड़े-मकोडों को खाकर पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में मदद करते हैं। जल और पृथ्वी दोनों जगह की जैव-विविधता आहार श्रृंखला बनाये रखने में इनका अति महत्वपूर्ण योगदान है।