पूर्व सैनिक लाला सिंह जाट, वरिष्ठ कवि अशोक त्रिपाठी, राष्ट्रीय कवि संगम के जिला अध्यक्ष सुनील चौकसे, वरिष्ठ समाजसेवी अमितेन्द्र नारौलिया, श्रीमती उजाला नारौलिया के आतिथ्य में मां शारदे की पूजा व बलराम मेहरा यहां अतिथि के रूप में मौजूद थे। इसके बाद काव्य गोष्ठी का शुभारंभ हुआ। इसमंे कवि प्रशांत शर्मा सरल ने अपनी कविता भारत की स्वतंत्रता खातिर जिन वीरों ने प्राण गंवाए हैं, इतिहास की खाली लकीरों पर उन वीरों ने नाम लिखाएं हैं के माध्यम से शब्द सुमन अर्पित किए। राखन राग और वरिष्ठ कवि महेश त्रिपाठी ने ओजपूर्ण शहीदों का स्मरण किया। त्रिपाठी ने कहा कि शहादत सदा उनकी याद होना चाहिए, गुरु के चरणों में सिर झुकना चाहिए, भारतमाता का दण्डवत प्रणाम होना चाहिए सुनाकर अपने मनोभावों जाहिर किए। देशभक्ति की इस पावन धारा में कुंजबिहारी यादव ने अपनी रचनाएं होने कुर्बान खड़े, वीरगति पाने सीना तान खड़े व जीवन अर्पण किया मातृभूमि के नाम, कतरा-कतरा लहू का आए मातृभूमि के काम सुनाकर गोष्ठी को आगे बढ़ाया तो सूर्यकांत साहू ने अगले क्रम में सामने आकर अपनी क्षणिकाओं डगर में बिछ रहे हैं बावले से फूल जैसे पहन भगवा कोई संत, जाने कितने पत्ते शहीद होते है तब एक मौसम बसन्त आता है से काव्य रस घोला। कवि कीरत पटेल ने देश के अमर शहीदों के चरणों में अपने शब्द सुमन मैया सुनियो अरज मां भारती ओ मां, भारत पूजे भवानी सब हिन्दुस्तान, आजादी पर्व मनावे रे होवे खुशहाल, गीत भगत सब गावे बाल-गोपाल के माध्यम से अर्पित किए ।
काव्य गोष्ठी की सरसता को वरिष्ठ कवयित्री गायत्री ठाकुर सक्षम ने अपने गीत मेरा देश, मेरी जान, मेरा ये वतन तुझ पे कुरबान जाऊं मादरे वतन से देशप्रेम की भावना को चरम पर पहुंचाया तो कवयित्री नामिता जाट ने अपनी कविता में एक बच्चे के बालसुलभ भाव को व्यक्त किया। नन्ही कवयित्रियों जूही सिंह ने पुष्प की अभिलाषा व अनन्या जाट ने हम भारत की बेटी कविताओं को सुनाकर बलिदानियों को अपनी श्रद्धांजलि दी। ललित श्रीवास्तव ने टुकड़े-टुकड़े कर देते गर, लड़ते रणभूमि में के माध्यम से काव्य जगत में पदार्पण किया। इसके पश्चात सुश्री इंदु सिंह ने शहीद का दर्जा, हम किस तरह उतार पाएंगे उनका कर्जा सुनाया। नरसिंह साहित्य परिषद के अध्यक्ष व कवि शशिकांत मिश्र ने जिस्म में जख्म देने को जहां तलवार भी कम है, रखे कदमों में अगर जन्न्त तो ये उपहार भी कम है और राष्ट्रभक्तों को नमन सौ बार भी कम है जैसी रचना सुनाकर उनकी महत्ता को अपनी कविता से दर्शाया । कवि आशीष सोनी ने अपने गीत बासन्ती चोला फिर नभ में छा गया, तन चन्दन लिपट तिरंगा आ गया से हर आंख नम कर दी व आकाश असीम ने चार पंक्तियों से अपनी बात रखी। गोष्ठी में बलराम मेहरा, सीबी शर्मा, प्रीति रैकवार, नीलम दोहरे, अनिल नेमा, अशोक त्रिपाठी, शिवकुमार वर्मा ने भी भावपूर्ण कविताएं प्रस्तुत की। आभार प्रदर्शन प्रशांत शर्मा ने किया। सभी ने दो मिनट का मौन रखकर बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी।