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नरसिंहपुर। वर्ष 2000 से 2002 तक जब मैं अध्ययन अवकाश पर था तब मैंने देश की सामाजिक-आर्थिक दशा को करीब से जाना। अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि बाजारवाद के चलते देश के ग्रामीण इलाकों में गरीबी तो नहीं घटी, अलबत्ता अपराध, बेरोजगारी व विषमताएं जरूर बढ़ गईं। महिलाओं के सम्मान में भी कमी आई। ये बात मंगलवार को जिला मुख्यालय पहुंचे राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के प्रवर्तक व ख्यातिलब्ध चिंतक केएन गोविंदचार्य ने पत्रकारों से कही।
स्थानीय होटल में आयोजित प्रेसवार्ता में श्री गोविंदाचार्य ने बताया कि वे वर्तमान में नर्मदा दर्शन यात्रा व अध्ययन प्रवास पर निकले हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये नर्मदा परिक्रमा नहीं है, न ही उनमें इतना साहस है कि वे परिक्रमा कर सकें। इस दर्शन यात्रा का उद्देश्य आध्यात्मिक है। यात्रा के दौरान बीच-बीच में बहुत से लोग भी शामिल हो रहे हैं। इस यात्रा के जरिए लोगों से बातचीत करना और नर्मदा दर्शन करना लक्ष्य है। श्री गोविंदाचार्य ने पर्यावरण, सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर भी खुलकर अपनी बात रखी। उनका कहना था कि हमें यदि देश का विकास करना है तो जीडीपी या ग्रोथ रेट जैसे विदेशी मानकों से लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो सकती है। विकास के लिए हमें भारतीय परिस्थिति के मुताबिक पद्धति इजाद करनी होगी। उन्होंने स्वदेशी विकास समेत सबको भोजन, सबको काम की व्यवस्था पर जोर दिया।
गोवंश की कमी पर जताई चिंता
चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने देश में लगातार घटती गोवंश की संख्या पर चिंता भी जताई। उन्होंने बताया कि जब अंग्रेज देश छोड़कर गए थे तब एक व्यक्ति पर एक गोवंश था लेकिन आज आजाद भारत में ये संख्या घटकर सात व्यक्तियों पर एक मवेशी हो गई है। उन्होंने कहा कि देश के पारिस्थितिक विकास व जैव संतुलन के लिए हमें जल, जंगल, जमीन, जानवर व जन के बीच तालमेल बिठाना होगा।
बाजारवाद पर खुलकर रखे विचार
देश में बाजारवाद के सवार पर केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि देश का सत्ता प्रतिष्ठान बाजारवाद के अनुकूल होने से जनकल्याण कर पाएगा, ऐसी उनमें आम सहमति बनी हुई है। उन्होंने सत्ता प्रतिष्ठान का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत में 5 आधार स्तंभ हैं, इनमें विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया और एकेडिमिया ही सत्ता प्रतिष्ठान हैं। राजनीतिक दलों की अपनी सीमाएं हैं, इसलिए जनता को इनसे सीमित अपेक्षाएं रखनी चाहिए। सत्ता का झुकान सिर्फ 10 फीसद जनता पर जाता है, यह बात सभी दलों पर लागू होती है।
देशभक्ति किसी दल विशेष की मोनापॉली नहीं
जल, जंगल, जमीन, जन और जानवरों के हित की बात करने वालों, आंदोलनकारियों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देशद्रोही करार दिया जाता है। इस सवाल पर चिंतक श्री गोविंदाचार्य ने कहा कि देशभक्ति किसी दल विशेष की मोनोपॉली नहीं हो सकती। उन्होंने ये भी कहा कि वे पिछले 20 साल से पंच ज की बात कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक किसी ने देशद्रोही नहीं कहा। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय स्तर पर संवाद, प्रदेश स्तर पर सहमति और जिलास्तर पर सहकारी होने से विकास हो सकता है। समस्याओं का अंत इसी में निहित है।
कृषि कानूनों पर दिए सुझाव
केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के संबंध में गोविंदाचार्य ने कहा कि उन्होंने आंदोलनकारी किसानों व सरकार दोनों को दिए हैं। इसमें पहला ये है कि कृषि कानूनों को अमलीजामा पहना दें, इसके बाद इस पर किसानों से संवाद करें। दूसरा सुझाव ये है कि अभी एमएसपी पर एडीएम को सर्वेसर्वा बनाया गया है, जबकि इसमें होना ये चाहिए कि 4 किसान, 4 कृषि वैज्ञानिक व दो अन्य अधिकारी शामिल रहें। इसे ट्रिब्यूनल का रूप दें ताकि किसानों के हितों की रक्षा हो सके।
हर गांव में बने गो सदन: श्री गोविंदाचार्य ने कहा कि हर पंचायत में गो सदन बनना चाहिए, हर जिले में गो अभ्यारण्य हो। इसके साथ ही उन्होंने संपूर्ण गोवध रोकने संबंधी कानून बनाए जाने की वकालत भी की। इसके बाद श्री गोविंदाचार्य बरमान स्थित गोशाला को देखने के लिए रवाना हुए।