नरसिंहपुर। जिले में बाहरी लोगों से ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य महकमे की लापरवाहियों के कारण भी कोरोना संक्रमण का खतरा है।यहाँ कोविड 19 की जांच से लेकर मरीज को इलाज देने के मामले में जिले की स्वास्थ्य सेवाएं लड़खड़ाती नजर आ रही हैं। इसकी बानगी शुक्रवार देर शाम जिला अस्पताल में देखने को मिली। जहाँ मेहरागांव का एक मरीज अस्पताल की चौखट पर तड़पता रहा। उसे इमरजेंसी में देखने के लिए करीब पौन घंटे तक कोई डॉक्टर नहीं आया। जब मरीज की साँसें थम थम गयीं तो अस्पताल कर्मी उसे ऑक्सीजन लगाने पहुंचे। थोड़ी देर दार उसे आधिकारिक रूप से मृत घोषित कर दिया गया। हैरत की बात ये है कि मरीज की मौत के बाद उसके साथ आए तीन लोगों के कोविड 19 के सैंपल तक नहीं लिए गए। उन्हें बिना जांच भगा दिया गया।
साईंखेड़ा में नहीं मिला इलाज, जिला अस्पताल पहुँचने में लगे 5 घंटे
घटनाक्रम कि शुरुआत मेहरागांव से होती है। यहाँ पीलिया के मरीज रमेश नामदेव की तबियत खराब होने पर 108 एम्बुलेंस को बुलाने में ही करीब 2 घंटे का वक्त लग जाता है। साईंखेड़ा के स्वास्थ्य केंद्र में पहुँचने पर यहाँ उन्हें इलाज नहीं मिलता। डॉक्टर सीधा जिला अस्पताल के लिए रेफर कर देता है। पुनः मिन्नतों के बाद करीब एक घंटे में एम्बुलेंस आती है, जो करीब जिला अस्पताल तक पहुँचने में डेढ़-दो घंटे लगा देती है। इस बीच मरीज की हालत लगातार बिगड़ती रहती है। जिला अस्पताल पहुँचने पर एम्बुलेंस चालक-परिचालक समेत अस्पतालकर्मी मरीज को हाथ तक नहीं लगाते। मजबूरन स्ट्रेचर पर मरीज के साथ आए तीन लोग मरीज को खुद ही उतारते हैं।
एक घंटे तक नहीं आया कोई डॉक्टर
जिला अस्पताल में मरीज के साथ आए लोग डॉक्टर्स को बुलाने की गुहार लगाते रहते हैं, लेकिन कोई नहीं आता। सिविल सर्जन मीटिंग में रहती हैं, सीएमएचओ साहब समस्या सुनकर पीड़ितों के फोन काट देते हैं। साथ आए परिजन के अनुसार इसी बीच करीब एक घंटे के इंतजार के बाद जब डॉक्टर स्नेहा नेमा आती हैं तब तक मरीज का तड़पना बंद हो जाता है। यानी उनकी मौत हो जाती है। डॉक्टर मरीज को वार्ड में ले जाकर ऑक्सीजन लगाती हैं और कोई हलचल नहीं दिखती है, तो वे भी आधिकारिक रूप से मरीज को मृत घोषित कर देती हैं। यदि मरीज को समय रहते इलाज मिल जाता तो उसकी जान बच जाती।
मरीज को छूने-उठाकर लाने वालों के सैंपल लिए बगैर भगाया
मरीज की मौत होने के बाद नियमानुसार डॉक्टर्स को मरीज समेत साथ आए लोगों के कोविड 19 के सैंपल लेने चाहिए थे। बावजूद इसके साथ आए परिजन को अस्पताल से भगा दिया जाता है। बाद में उन्हें बुलाकर डेथ बॉडी सौंप दी जाती है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब रोगी के रोग की पड़ताल ही डॉक्टर्स नहीं कर पाए थे तो उन्होंने किस आधार पर मरीज और उसके साथ आए लोगों को संक्रमण की आशंका से मुक्त कर दिया।
सिविल सर्जन का ये था कहना
इस मामले में सिविल सर्जन डॉ अनीता अग्रवाल का कहना था कि जब मेहरागांव का मरीज जिला अस्पताल पहुंचा था तो उस समय मैं मीटिंग में थी। अन्य डॉक्टर्स दो मरीजों को सीपीआर दे रहे थे। इसलिए रमेश नामदेव को इलाज देने में देरी हुई। वैसे भी संक्रमण के दौर में डॉक्टर्स को भी ग्लब्स, मास्क बदलने पड़ते हैं, जिसमे समय लगता है। मरीज पहले से ही पीलियाग्रस्त था।
अम्हेटा में पूरे परिवार के लिए कोविड सैंपल, कराया कोरन्टाइन
रमेश नामदेव के मामले में साथ आए लोगों के कोविड सैंपल लेने के बजाए उन्हें भगा दिया गया। जबकि दो दिन अम्हेटा पिपरिया गाँव की उमा जाटव की मौत के बाद पूरे परिवार के कोविड 19 सैंपल लिए गए हैं। पूरा गांव लॉकडाउन कराया गया है। एक ही तरह के मामलों में अलग-अलग नियम क्यों….इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है। जिम्मेदारों को फोन लगाओ तो वे मीटिंग में व्यस्त रहते हैं।