गोष्ठी में प्रशांत शर्मा ‘सरल” ने अपनी भावनाएं बहकते कदम पैर जमाना सीख ले मन, गगन ऊंचा है नजरें झुकाना सीख ले मन से पेश की। परिषद अध्यक्ष शशिकांत मिश्र ने तुम मछली सी तड़प रही थीं मैं चातक सा ताक रहा था लेकिन प्रिये तुम्हें ब्याहकर लाने में तो देर लगी न रचना से अपने भावों को स्वर दिए। कवि सूर्यकांत साहू ने आपके तलुओं से चिपका मैं अरसे तक बूट रहा हूं, अब इतना घिस चुका हूं कि बस टूट रहा हूं, तिंदनी के कवि महेंद्र गिगोलिया मोती ने छोड़ो बंद कुरीति कब तक ढोते जाओगे कविता गुनगुनाकर अंधविश्वास से विलग रहने की सीख दी। हास्य कवि आशीष सोनी आदित्य ने दौजों में निकारौ दिवारौ री मोरे घर में आओ सारौ गीत सुनाकर खूब तालियाँ बटोरीं। वहीं बचई के कवि बलराम मेहरा ने कविता के सिकंदर समुंदर में नहाते हैं कविता गाकर कद्दावर कवियों पर व्यंग्य किया। कवि राखन राग ने बेटी पर केंद्रित रचना सुनाई, वहीं डॉ. महेश त्रिपाठी ने दया, करुणा, प्रेम बरसाओ मानव हो मानवता दिखाओ कविता से नवसंदेश दिया। कवयित्री रश्मि जाट ने अपने जज्बात मेरे पंखों को इक नई उड़ान दे दो, मेरे सपनों को भी एक जहान दे दो, सतीश तिवारी ने आया नव दम संडे कुछ खुशियां अरु कुछ गम संडे गाकर लयात्मकता प्रदान की। कवि अशोक त्रिपाठी ने जहां प्राण जाएं पर वचन न जाए इस दुनिया का नारा है दुनिया भर में सबसे अच्छा भारत देश हमारा है, गीत गायन किया। राकेश माहेश्वरी ने मैं रहता हूं कच्चे मकान में और ख्वाबों को पाल रहा हूं आसमान में, रचना से गोष्ठी को ऊंचाइयां दी। श्रोताओं में उजाला नारोलिया, मिथिलेश जाट, सुनील चौकसे आदि की उपस्थिति रही।