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नरसिंहपुर। जिले में कोरोना संक्रमित होते ही अमूमन मरीज आक्सीजन सिलिंडर तलाशते नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि कृत्रिम सांस लेकर वे बच सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। चिकित्सकों के अनुसार मनमाने तरीके से कृत्रिम सांस लेने पर आंखों की ज्योति जा सकती है, दिमाग पर विपरीत असर पड़ सकता है, ये जानलेवा भी साबित हो सकती है। जिला अस्पताल की सिविल सर्जन डॉ. अनीता अग्रवाल के अनुसार आक्सीजन सिलिंडर की जरूरत उन्हीं मरीजों को पड़ती है जिनका एसपीओ 2 लेवल 90 से बहुत अधिक नीचे चला जाए। 92 तक के लेवल पर इसकी ज्यादा जरूरत नहीं होती है। बावजूद इसके लोग 94 से नीचे का लेवल आते ही आक्सीजन की मांग करने लगते हैं, जो कि सही नहीं है। डॉ. अग्रवाल के अनुसार बिना चिकित्सक की निगरानी और अनुशंसा के आक्सीजन लेना घातक हो सकता है। क्योंकि शरीर में प्राकृतिक आक्सीजन लेने के साथ वह कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में बाहर भी निकलती है। जबकि सिलिंडर से आक्सीजन शुद्ध रूप में अंदर जाती है तो उस अनुपात में कार्बन डाइऑक्साइड नहीं बन पाती। ऐसे में अधिक फ्लो में अधिक आक्सीजन लेने पर आंख की ज्योति जाने से लेकर दिमाग की नस फटने का खतरा रहता है। विदित हो कि जिला अस्पताल में कुछ दिन पहले एक महिला की आइसीयू में मौत हो गई थी। इस महिला का एसपीओ 2 लेवल ठीक-ठाक था लेकिन परिजनों ने मनमाने तरीके से एंबुलेंस में ही महिला को 2 सिलिंडर से कृत्रिम सांस दिलाई, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई थी। बाद में उसकी मौत भी हो गई।