नरसिंहपुर। देश-प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से आइएमए और मॉडर्न मेडिसिन यानी एलोपैथी के खिलाफ अनर्गल, तथ्यहीन, भ्रामक दुष्प्रचार कतिवय द्वारा किया जा रहा है। आमजन को इससे सावधान रहने के साथ-साथ फ्रंटलाइन वर्कर्स की हौसलाफजाई करने की जरूरत है। ये बात इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष व वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ. संजीव चांदोरकर ने एक बयान में कही है। उन्होंने कहा कि सरकारी तंत्र, सारे प्रथम पंक्ति के कोरोना योद्धा, स्वास्थ्य विभाग का अमला समेत सफाई कर्मचारी आदि इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए दिन-रात लगे हुए हैं। मुद्दे से ध्यान भटकाने, कोविड के इलाज की गाइडलाइन, वैक्सीनेशन प्रोटोकाल व उसकी उपयोगिता पर बगैर जांच परखे, बिना किसी मान्य वैज्ञानिक प्रमाण के सवाल उठाए जा रहे हैं। इससे आम आदमी के मन में संशय की स्थिति बन सकती है। आज संकट के दौर में विशिष्ट व्यक्तियों का यह नैतिक दायित्व है कि वे कोविड की रोकथाम अनुरूप व्यवहार व टीकाकरण के प्रति वातावरण निर्माण का कार्य करें। डॉ. चांदोरकर ने कहा कि विज्ञान की कसौटी और समय की कसौटी पर परीक्षित मॉडर्न मेडिसिन के प्रति दुर्भावनावश समाज मे भ्रम फैलाना आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। आइएमए के गठन पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि इसके उद्देश्यों में स्पष्ट लिखा गया कि यह संगठन मेडिकल साइंस और उससे संबंधित शाखाओं के उत्तरोत्तर विकास, चिकित्सा शिक्षा, आम नागरिकों के स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवा की गरिमा नैतिक मूल्यों के प्रतिपादन और चिकित्सकों की प्रतिष्ठा के लिए कार्य करेगा। इसका गठन उस समय हुआ जब अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई बापू के नेतृत्व में पूरे जोरों पर थी। उस समय के नामचीन चिकित्सक डॉ केएस रे, डॉ नीलरतन सरकार, डॉ बीसी रॉय,डॉ अंसारी, कर्नल डॉ भोलानाथ, डॉ मेजर एमजी नायडू, डॉ वीएन व्यास, डॉ डीए चक्रवर्ती, डॉ विश्वनाथन, डॉ कैप्टन वी मुखर्जी इत्यादि ने आइएमए के लिए अंग्रजी हुकूमत के खिलाफ बहुत जद्दोजिहाद कर इस भारतीय मूल के संगठन को खड़ा किया। अनेक स्वतंत्रता आंदोलन में प्रत्यक्ष हिस्सा लिया और जेल की यात्रा भी की। उस समय यह संगठन मात्र 222 सदस्यों का था। इस संगठन के कड़े विरोध के कारण ब्रिटिश सरकार 1929 में किसी अंग्रेज को कमिश्नर मेडिकल एजुकेटिन के पद पर नियुक्त नहीं कर पाई। बड़े गर्व की बात है कि गठन से लेकर आज तक किसी ने भी चिकित्सा सेवा के दौरान जाति, धर्म, भाषा, संप्रदाय, क्षेत्र, राष्ट्रीयता आदि के आधार पर मरीजों से व्यवहार नहीं किया।