नवरात्रि का पांचवा दिन स्कंदमाता को समर्पित है। इस दिन को नवरात्रि की पंचमी भी कहा जाता है। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की जन्म कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर होता हैं वे यदि इस दिन स्कंदमाता की पूजा करते हैं तो वृहस्पति की अशुभता दूर होती है । वहीं बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है। वृहस्पति ग्रह शिक्षा, उच्चपद और मान सम्मान का कारक है। नवरात्रि के पांचवे दिन स्कन्दमाता शेर पर सवार होकर आती हैं। स्कन्दमाता माता को पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनकी गोद में कार्तिकेय बैठे होते हैं इसलिए इनकी पूजा करने से कार्तिकेय की पूजा अपने आप हो जाती है। कार्तिकेय की पूजा से मंगल भी मजबूत होता है। मां स्कंदमाता को सुख शांति की देवी माना गया है।