कालिया नाग के दमन पर स्वामीजी ने कहा कि विषय ही विष है। अत: इंद्रियों की विषयलालसा से उपराम होना भी भागवत का उपदेश है। हजारों गोपियों के संग रहने पर भी श्रीकृष्ण ऋ षिकेश अर्थात इंद्रियों के अधिपति हैं। उन्होंने कहा कि माखन ही दूध का सत्व यानी सार है, कन्हैया की माखन लीला बताती है कि भगवान सार भोगी है। गोपियों के अहंकार रूपी वस्त्र का भगवान ने हरण किया यही चीरहरण है। सायंकालीन सत्र में स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा के अवतार के प्रधान कारणों में एक दुष्टों का विनाश भी है किंतु भगवान का कोई शत्रु नहीं होता। भगवान हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु, रावण, कंस, शिशुपाल किसी को नहीं मारते वे सभी को मुक्ति प्रदान करते हैं। महाराजश्री ने कहा कि भगवान ने अवतार लेकर असुरों को मुक्ति दी और भूमि का भार हरण किया। रुक्मिणी साक्षात लक्ष्मी हैं, वह केवल विष्णु के साथ ही जाती हैं। इसीलिए भगवान ने असुरों को दंडित कर रुक्मिणी का हरण किया। हमारी गुरुकुल व्यवस्था में गरीब – अमीर का भेद नहीं था, तभी जिस गुरुकुल में राजपुत्र और श्रीकृष्ण बलराम पढ़ते थे वही एक गरीब ब्राह्मण सुदामा भी पढ़ता है। भगवान आपका धन नहीं भाव देखते हैं।