बरमान: संत रावतपुरा सरकार बोले- विनम्रता से संभल जाता है मौन लेकिन अपमान सहने के लिए लगती है हिम्मत
धर्मेश शर्मा
बरमान। मौन को तो लोग विनम्रता से संभाल लेते हैं, परंतु अपमान सहने में बड़ी हिम्मत लगती है। स्वामी विवेकानंद ने जीवन जीने के जो सूत्र दिए हैं उनमें एक है अपमान सहना भी सीखें। ये प्रेरक उद्बोधन संत रावतपुरा सरकार ने बुधवार को राजमार्ग चौराहा में चातुर्मास सत्संग के दौरान दिया। इसके पूर्व उन्होंने नर्मदा के गोपाल घाट आकर नर्मदाजी का पूजन किया। संत ने अपने संदेश में कहा कि आजकल व्यक्ति थोड़ी सी विपत्ति आने में अपना धैर्य खो बैठता है। जो धैर्य रखता है, मान-अपमान की चिंता किए बिना आगे बढ़ता है उसका लक्ष्य आसान हो जाता है। दो बातों को पचाने में बड़ी ताकत लगती है मान और अपमान। मान अगर ठीक से न पचे तो अहंकार की डकारें आने लगती हैं। मान का अपच दूरगामी बीमारी लाता है लेकिन अपमान पचाना उससे भी कठिन होता है। जो व्यक्ति इन दोनों में समभाव रखता है, उग्र नहीं होता, क्रोध नहीं करता धैर्य रखता है वहीं लक्ष्य तक पहुंचता है।
संतश्री ने दृष्टांत दिया कि रावण ने भरी सभा में हनुमानजी का जमकर अपमान किया लेकिन हनुमानजी बल, बुद्धि और विवेक के देवता हैं उन्होंने रावण के अपमान को शांतिपूर्वक सहन किया और लंका दहन कर दुर्गुणों का विनाश कर अपना लक्ष्य हासिल भी प्राप्त किया। सद्गुरु भगवान कहते हैं बुद्धिजीवी महावीरजी, विवेकानंद जी यहां तक गांधीजी तक यह परंपरा अनेक रूप में आती रही है कि अपमान सहते हुए भी गलत का पुरजोर विरोध किया जा सकता है। समाज परिवार में रहते हुए भी अपने हित में दूसरों के हित भी शामिल हैं। कुछ लोगों का जीवन हमारे भरोसे चल रहा है उनके हितों का ध्यान रखना हमारा कर्त्तव्य है। इसीलिए नि:स्वार्थ भाव का अर्थ ठीक से समझना जरुरी होता है। कहने का आशय यह है कि आप मान अपमान की चिंता किए बिना धैर्य रखकर, आगे बढ़ें क्योंकि जो अच्छा काम करते हैं उसको दोनों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए इसके परे होकर अपने कर्त्तव्य पथ पर धैर्य के साथ आगे बढ़ें लक्ष्य भी मिलेगा और सफलता भी मिलेगी। विधायक संजय शर्मा के कार्यालय परिसर में बने पांडाल मंे चल रहे सत्संग के दौरान बड़ी संख्या मंे श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।