नरसिंहपुर: डॉ तिगनाथ की मौत मामले में साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 दरकिनार, बेफिक्र घूम रहे सूदखोर
नरसिंहपुर। सूदखोरों की प्रताड़ना से तंग आकर बीती 22 अप्रैल को ट्रेन के सामने जान गवाने वाले युवा चिकित्सक डॉक्टर सिद्धार्थ तिगनाथ के मामले में पुलिस लगातार गलतियां कर रहीं है। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लंघन होने लगा है। सिद्धार्थ की मौत 12 दिन बीत चुके हैं, लेकिन आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है। पूछताछ के नाम पर मामले को लटकाने की कोशिश जारी है। जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के अंतर्गत सिद्धार्थ की मृत्यु पूर्व लिखी डायरी को प्रथम दृष्टया साक्ष्य मानते हुए तत्काल आरोपियों की गिरफ्तारी की जान थी लेकिन कोतवाली पुलिस ने ऐसा नहीं किया।
क्या है साक्ष्य अधिनियम
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 32 में मृत्यु पूर्व दिए बयान को बेहद अहम माना गया है। प्रचलित विधि व्यवहार के अनुसार संज्ञेय अपराधों में अमूमन इन मृत्यु पूर्व बयान के आधार तत्काल आरोपियों की गिरफ्तारी की जानी चाहिए। हालांकि इन बयानों के आधार पर निर्णय देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायालयों को कुछ जरूरी दिशा-निर्देश दे रखे हैं। लेकिन पुलिस स्तर पर इन्हें प्राथमिक और महत्वपूर्ण साक्ष्य माना गया है, जिसकी उपेक्षा पुलिस नहीं कर सकती है।
अब तक यहां तक पहुंची जांच
22 अप्रेल को डॉ सिद्धार्थ तिगनाथ ने आत्महत्या की थी। दो दिन बाद पुलिस ने उनके घर से उनके द्वारा लिखित डायरी प्राप्त की थी, जिसमें खुदकुशी करने का कारण और जिम्मेदार सूदखोरों के स्पष्ट रूप से नाम लिखे थे। जांच का जिम्मा एसडीओपी को दिया गया था। हालांकि उनके कोरोना संक्रमित होने के बाद जांच लटकी रही। खबर लाइव ने जब मामले को उछाला तो सिद्धार्थ के पापा-चाचा के बयान लिए गए। इसके बाद 3 मई से सूदखोरों का बुलावा शुरू हो गया। सोमवार को बबलू यादव और गोविंद पटेल से देर रात तक पूछताछ होती रही।
बड़े सूदखोरों को बचाने की कोशिश
हैरत की बात ये है कि डायरी में 6-7 बड़े सूदखोरों के नाम स्पष्ट रूप से कई बार लिखे हैं। जिन्होंने लाखों रुपए का मनमाना ब्याज वसूला। बावजूद इसके इन्हें रिमांड पर लेने के बजाय पुलिस शांति दूत की तरह इनसे सामान्य तरीके से पूछताछ कर रही है।