नरसिंहपुर: आद्य शंकराचार्य के बाद स्वामी सदानंद सरस्वती ने ग्रंथों को संरक्षित करने किया काम

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आनंद श्रीवास्तव, नरसिंहपुर

करकबेल के पास बरगी गांव में 31 अगस्त 1958 में जन्मे 62 वर्षीय सदानंद सरस्वती पूर्व नाम रमेश अवस्थी शारदा द्वारका के नए शंकराचार्य बने हैं। बहुत कम लोगों को पता होगा कि वे अब तक चार भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत भाषा में करीब 12 किताबें लिख चुके हैं। जबकि उन्होंने महज 12 साल की उम्र में ही स्कूल में सहपाठी से हुए मामूली झगड़े के कारण 8वीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। घर में डांट न पड़े इस डर से वे स्कूल से सीधे साइकिल चलाकर परमहंसी गंगा आश्रम पहुंच गए थे।

शारदा-द्वारका पीठ के नए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती, हिंदी, संस्कृत, गुजराती व अंग्रेजी भाषा में अब तक करीब एक दर्जन किताब लिख चुके हैं। इनका संग्रह परमहंसी गंगा आश्रम में है। इनकी सबसे प्रमुख कृति देवी आराधना पर आधारित सौंदर्य लहरी बताई जाती है। जिसे मूल रूप से करीब ढाई हजार साल पहले आद्य शंकराचार्यजी ने संस्कृत में लिखी थी। इसका हिंदी में अनुवाद सदानंद सरस्वतीजी ने किया, ताकि आमजन भी इसे सहजता से पढ़ सके। इतना ही नहीं सनातन धर्म की सभी कृतियों, ग्रंथों आदि को सुरकि्षत रखने के लिए सदानंद सरस्वती इन्हें कंप्यूटर में भी सुरकि्षत करवा चुके हैं, ताकि भविष्य की पीढ़ी तकनीक का इस्तेमाल कर अपनी संस्कृति, परंपरा को सहजता से जान सके। बता दें कि आद्य शंकराचार्यजी ने भी लुप्त हो रहे धर्मग्रंथों को संरकि्षत करने का बीड़ा उठाया था। श्री सदानंद सरस्वती ने कागजों के जीर्ण-शीर्ण होने की आशंका को देखते हुए ही इन्हें डिजिटल करने के प्रयास किए।

झोतेश्र्वर से बनारस, द्वारका तक का सफर

वर्ष 1970 में झोतेश्वर पहुंचे रमेश अवस्थी ने संस्कृत अध्ययन शुरू किया। वर्ष 1975 से 1982 तक यहां राजराजेश्र्वरी ति्रपुर सुंदरी का निमरण होने तक वे यहीं रहे। रमेश की धर्मग्रंथों व सनातन धर्म के प्रति जिज्ञासाओं को देखकर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उन्हें बनारस भेजा। जहां उन्होंने करीब 8 साल तक वेद, पुराण व अन्य धर्मग्रंथों की शिक्षा व शास्त्रार्थ में निपुणता हासिल की। वर्ष 1990 में गुरू के आदेश पर ये द्वारका पहुंचे। यहां उन्होंने गुजराती, अंग्रेजी भाषाओं मंे निपुणता हासिल की। वर्ष 1995 में इन्हें शंकराचार्य जी का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। इस दौरान उन्होंने भवन संरचना, कंप्यूटर दक्षता भी हासिल की।

वर्ष 2003 में दंड शिक्षा, बने सदानंद सरस्वती

जानकारी के अनुसार ब्रह्मलीन स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने वर्ष 2003 में रमेश अवस्थी को दंड शिक्षा के लिए बनारस भेजा। इसके पूर्व उन्हें परिवार का मोह त्यागने, परिजनों का गंगा में जाकर तर्पण करने, सुख-दुख के भाव, सांसारिक भोगों के भाव चेहरे पर न आने के कठोर नियम बताए। जिसे रमेश अवस्थी ने स्वीकार कर लिया और गंगाजी में जाकर परिजनों का तर्पण किया। ब्राह्मणों को भोजन कराया। इसके बाद दंड शिक्षा के लिए उनका नामकरण सदानंद सरस्वती किया गया। दंड शिक्षा के पूरे होने पर वे दंडी स्वामी कहलाए।

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