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दीपेश्वरी रामायणी

जो दूसरों का हित करता है, उसका हित ऊपरवाला करता है

ईश्वर की प्राप्ति के लिए हमारे मन का निर्मल और पवित्र होना जरूरी है। जो व्यक्ति जानता ही नही धर्म और अधर्म क्या है वह यह भी नहीं जानता कि क्या पाप है और क्या पुण्य है।
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