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जनजातीय समुदायों का विकास समावेशी विकास के दर्शन की शर्त ही नहीं बल्कि हमारा संवैधानिक दायित्व है: उपराष्ट्रपति

The Vice President, Shri M. Venkaiah Naidu releasing the magazine titled, ‘Gondi Chitrakala and Janagna Shyam’, during the Adivasi Mahotsav 2020, in Ramnagar (Mandla), Madhya Pradesh on February 15, 2020. The Minister of State for Culture and Tourism (Independent Charge), Shri Prahlad Singh Patel, the Minister of State for Steel, Shri Faggan Singh Kulaste, the Minister of State for Tribal Affairs, Smt. Renuka Singh Saruta and other dignitaries are also seen.

मंडला।उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने 15 फरवरी रामनगर में आयोजित वार्षिक आदिवासी महोत्सव के अवसर पर कहा कि ‘ प्राकृतिक आपदाओं, प्रदूषित पर्यावरण से त्रस्त विश्व, जब प्रकृति सम्मत स्थाई विकास के रास्ते खोज रहा है, हमारे जनजातीय समुदायों के पास, पीढ़ियों के अनुभव से प्राप्त वह ज्ञान और विद्या है जो भविष्य के लिए स्थाई, समावेशी और प्रकृति सम्मत विकास सुनिश्चित कर सकता है।’ उन्होंने कहा कि इन समुदायों ने पीढ़ियों से एक पर्यावरणीय नैतिकता, Environmental Ethics, विकसित की है, जो आज के तथाकथित सभ्य समाज के लिए भी अनुकरणीय है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह आवश्यक है कि जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान और शिल्प को संरक्षित रखते हुए भी उन्हें राष्ट्रीय जीवन की मुख्य धारा में बराबर के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जाएं। जनजातीय समुदाय के विकास की अपेक्षाओं, आकांक्षाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।उन्होंने कहा कि आवश्यक है कि प्रशासन और स्थानीय समुदाय के बीच निरंतर रचनात्मक संवाद हो जिसमें विकास तथा परम्परा के बीच संवेदना और संतुलन की आवश्यकता होगी। श्री नायडू ने कहा कि हमारे जनजातीय समुदायों का विकास न केवल हमारे समावेशी विकास के दर्शन की आवश्यक शर्त है बल्कि हमारा संवैधानिक दायित्व भी है जिसके लिए हमारे संविधान में जनजातीय क्षेत्रों और समुदायों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

शनिवार को आदिवासी महोत्सव के अवसर पर  उन्होंने उसे हमारे देश के मूल संस्कारों का उत्सव बताया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने वीरांगना रानी दुर्गावती और रानी अवंती बाई की पुण्य भूमि गोंडवाना के लोकप्रिय शासकों और नायकों के पुण्य स्मृति को  विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की।

उपराष्ट्रपति ने अपेक्षा व्यक्त की कि इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से जनजातीय समुदाय को ही नहीं बल्कि स्थानीय प्रशासन को भी परिचित कराया जाय। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति ने इस वर्ष के अपने अभिभाषण में इस वर्ष 400 एकलव्य विद्यालयों के निर्माण की घोषणा की है। जनजातीय समुदायों की आय बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा वन उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना की घोषणा की गई है। उपराष्ट्रपति ने सुझाव दिया कि जनजातीय शिल्प, वस्त्रों, वन उत्पादों और युवाओं की उद्यमिता को आवश्यक बाज़ार उपलब्ध कराने के लिए,  खादी ग्रामोद्योग के विस्तृत नेटवर्क से TRIFED को जोड़ना चाहिए।उन्होंने आशा व्यक्त की कि  E COMMERECE के

The Vice President, Shri M. Venkaiah Naidu paying floral tributes to the memorial of Gond Kings, during Adivasi Mahotsav 2020, in Ramnagar (Mandla), Madhya Pradesh on February 15, 2020.

आने से बाजार को और भी विस्तृत किया जा सकता है। इस अवसर पर श्री नायडू ने कहा कि  हमारे अकादमिक और बौद्धिक विमर्श में जनजातीय पारंपरिक ज्ञान परम्परा पर शोध किया जाना जरूरी है अन्यथा ये समृद्ध परंपरा लुप्त हो जाएगी।  विगत 50 वर्षों  में भारत में लगभग 250 भाषाएं और बोलियां विलुप्त हो गई है और इनमें से अधिकांश बोलियां जनजातीय समुदायों की हैं। उन्होंने कहा कि एक भाषा के लोप के साथ ही एक सभ्यता, एक संस्कृति की सृजनात्मक परम्परा का अवसान होता है। उन्होंने  विश्वविद्यालयों से अपेक्षा की कि वे स्थानीय जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और शोध का केंद्र बने। उन्होंने कहा कि ‘ हम सभी भारत की प्राचीन सभ्यता, उसके इतिहास के उत्तराधिकारी है, लेकिन हमारे जनजातीय समुदाय वास्तव में  उन प्राचीन संस्कारों को अपने जीवन में जीते हैं। प्रकृति को माता के रूप में देखना उसकी असीम शक्तियों में ममता को देखना, उसे आदरपूर्वक पूजना-ये संस्कार हमें स्थानीय जनजातीय समुदायों से ही प्राप्त हुए हैं।’

भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में जन जातीय समुदाय के महत्वपूर्ण योगदान की चर्चा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि आदिकाल से ही  हमारे जनजातीय समुदायों भारतीय सभ्यता के अभिन्न अंग रहे हैं। ‘रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों में स्थानीय समुदायों की वीर परम्परा का उल्लेख मिलता है। यदि इन ग्रंथों का सामाजिक और anthropological दृष्टि से अध्ययन करें तो पाते हैं कि ये ग्रंथ देश के विभिन्न क्षेत्रों, स्थानीय वनवासी, जनजातीय समुदायों के बीच परस्पर संबंधों के विकास की जटिल प्रक्रिया का इतिहास हैं। आस्थाओं और मान्यताओं में संवाद की यह प्रक्रिया पीढ़ियों तक चली होगी। इसी प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति को सहिष्णु और समावेशी बनाया है। इसी विविधता को हमारे संविधान में स्वीकार भी किया गया है और संरक्षित भी।’

देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि वस्तुत:  हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत भी, अंग्रेज़ों की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ 19वीं सदी के स्थानीय जनजातीय आंदोलनों से ही हुई जिन्होंने  ब्रिटिश साम्राज्य के शोषणकारी, क्रूर चरित्र को उजागर किया।इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में रानी अवंतीबाई की वीरता को हर पीढ़ी के लिए वंदनीय बताया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन आंदोलनों को हमारे इतिहास में स्थान मिलना चाहिए, तभी हमारा इतिहास सम्पूर्ण और समावेशी होगा।  उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति जी ने इस वर्ष अपने अभिभाषण में जनजातियों के वीर योद्धाओं के बलिदान से देशवासियों को परिचित कराने के लिए, संग्रहालय की स्थापना करने की घोषणा की है।

उपराष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि आदिवासी महोत्सव के आयोजन से प्राचीन सतपुड़ा पहाड़ों की तलहटी में नर्मदा के समीप बसा, गौंड राजाओं का यह ऐतिहासिक क्षेत्र, पर्यटन का केन्द्र बनेगा, जिससे न केवल इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का  विकास होगा, बल्कि अन्य क्षेत्र के देशवासियों को यहां की समृद्ध संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के विषय में जानकारी मिलेगी।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने शासकीय नीतियों और कार्यक्रमों से लाभान्वित हुए नागरिकों को प्रमाणपत्र वितरित किए।

उपराष्ट्रपति ने जनजातीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नृत्य को भी देखा। कार्यक्रम के बाद उपराष्ट्रपति मंच से उतर कर उपस्थित जन समुदाय से मिले।

इस अवसर पर  केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते, केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री श्री प्रह्लाद सिंह पटेल, केंद्रीय जनजातीय मामलों की राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सहित अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।