भारतीय वायुसेना की एक ऐसी जांबाज़ अधिकारी, जिनकी कहानी सिर्फ रडार स्क्रीन तक सीमित नहीं है, बल्कि संविधान की चौखट तक गूंज रही है—विंग कमांडर निकिता पांडेय। देश की रक्षा में अपने योगदान से लेकर न्याय की लड़ाई तक, उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि असली वीरता सिर्फ युद्धभूमि पर ही नहीं, बल्कि न्याय की ज़मीन पर भी दिखाई देती है।

उन्होंने न केवल ऑपरेशन बालाकोट (2019) और ऑपरेशन सिंदूर (2025) जैसे रणनीतिक अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक लड़ाई जीतकर सभी महिला अधिकारियों के लिए नया रास्ता भी खोला।
✈️ वायुसेना में शुरुआत से लेकर ऑपरेशन्स तक: एक गौरवशाली करियर
2011 में शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के ज़रिए भारतीय वायुसेना में कदम रखने वाली निकिता पांडेय ने बीते 13.5 वर्षों में अपने कार्यों से यह दिखा दिया कि सेवा की अवधि चाहे “शॉर्ट” हो, लेकिन संकल्प और योगदान कभी सीमित नहीं होते।
वे एक Fighter Controller के रूप में कार्यरत हैं, जो भारतीय वायुसेना की सबसे चुनौतीपूर्ण शाखाओं में से एक है। इस भूमिका में, उन्होंने IACCS (Integrated Air Command and Control System) के तहत हवाई हमलों की निगरानी, सामरिक आदेश देना, और राष्ट्रीय सुरक्षा में अहम फैसलों का हिस्सा बनने जैसे जिम्मेदार कार्य निभाए।
🗂️ मुख्य जानकारी सारणी (Key Profile Overview Table)
बिंदु (Aspect) | विवरण (Details) |
---|---|
अधिकारी का नाम | विंग कमांडर निकिता पांडेय |
सेवा प्रवेश वर्ष | 2011 (SSC – Short Service Commission) |
कुल सेवा अवधि | 13.5 साल से अधिक |
पद | Fighter Controller, भारतीय वायुसेना |
मुख्य अभियानों में भूमिका | ऑपरेशन बालाकोट (2019), ऑपरेशन सिंदूर (2025) |
तकनीकी विशेषज्ञता | IACCS – Integrated Air Command & Control System |
कोर्ट केस | परमानेंट कमीशन से वंचित करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका |
कोर्ट का निर्णय | सेवा से ना हटाने का निर्देश, अगली सुनवाई 6 अगस्त 2025 को |
⚖️ क्यों लड़ी निकिता ने न्याय की लड़ाई?
निकिता पांडेय ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा इसलिए खटखटाया क्योंकि उन्हें स्थायी कमीशन (Permanent Commission) से वंचित कर दिया गया था, जबकि उन्होंने वर्षों तक उत्कृष्ट सेवा दी थी। कोर्ट में उनके वकील मेनका गुरुस्वामी और आस्था शर्मा ने तर्क दिया कि—
“जब पुरुष अधिकारियों को स्थायी सेवा का मौका दिया जा सकता है, तो महिलाओं को सिर्फ SSC तक सीमित रखना एक प्रकार का लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) है।”
उन्होंने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील मिशन में उनकी रणनीतिक नियुक्ति ही इस बात का प्रमाण है कि वे हर प्रकार से स्थायी सेवा की हकदार हैं।
🧑⚖️ सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और ऐतिहासिक फैसला
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि—
“एक प्रोफेशनल फोर्स में यदि काबिल अधिकारियों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता रहेगी, तो यह पूरे संगठन के मनोबल पर असर डालेगा।”
कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि SSC अधिकारियों की भर्ती करते समय ही यह सुनिश्चित किया जाए कि योग्य उम्मीदवारों को स्थायी कमीशन मिलने की व्यवस्था हो। जब तक अंतिम फैसला नहीं आता, निकिता को सेवा से नहीं हटाया जाएगा।
🎯 यह फैसला क्यों है मील का पत्थर?
विंग कमांडर निकिता पांडेय पहली ऐसी IAF महिला अधिकारी हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट से यह सुरक्षा मिली कि उन्हें जबरन सेवानिवृत्त नहीं किया जा सकता। इससे पहले मई 2025 में थल सेना की 50 से ज्यादा महिला SSC अधिकारियों को भी इसी तरह की राहत मिल चुकी है।
यह फैसला न केवल एक व्यक्तिगत जीत है, बल्कि यह साबित करता है कि अब समय आ गया है कि सशस्त्र बलों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाए—नियमों में नहीं, व्यवहार में भी।
🌺 निकिता की कहानी क्यों है प्रेरणादायक?
निकिता की कहानी सिर्फ एक महिला अधिकारी की नहीं है, बल्कि यह एक पूरी पीढ़ी की आवाज़ है, जो समान अवसर, सम्मान और पहचान की मांग कर रही है। उनके संघर्ष ने उन सैकड़ों-हज़ारों महिला अफसरों को हौसला दिया है जो आज भी नियमों के लैंगिक भेदभाव से जूझ रही हैं।
उनका साहस यह बताता है कि—
“जो आसमान की ऊँचाई नाप सकते हैं, उन्हें नीति की सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता।“
📌 निष्कर्ष (Conclusion)
विंग कमांडर निकिता पांडेय की यात्रा सिर्फ एक अधिकारी की नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत है। उन्होंने यह दिखा दिया कि यदि इरादे मजबूत हों, तो इंसान आकाश भी छू सकता है और ज़मीन पर न्याय भी पा सकता है।
उनकी ये जीत आने वाले वर्षों में भारतीय सशस्त्र बलों के ढांचे में नए बदलाव, नई सोच और नई नीतियों का रास्ता बनाएगी।