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सड़ूमर की बेटी ने तोड़ी रूढ़ियाँ, अपने विजन से गाँव को दिलाई देश में पहचान

अंतरराष्ट्रीय फेमिना अवार्ड समारोह में सम्मानित हो चुकीं जिले की बेटी सरपंच मोना कौरव।

देश की प्रतिष्ठित सीएसआर कॉन्फ्रेंस में अवार्ड प्राप्त करतीं सरपंच मोना कौरव ।
हेलीकाप्टर में सरपंच मोना कौरव से उनके विजन पर चर्चा करते मुख्यमंत्री कमलनाथ।

नरसिंहपुर।

दशकों तक पिछड़ेपन का दंश भोगने वाला मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले का सडूमर गॉव अब गॉव की बेटी मोना कौरव द्वारा सरपंच के रूप में कराए गए विकास कार्यों से जाना जाता है। जिसने अपनी सक्रियता से न केवल सामाजिक रूढिया तोड़ी हैं बल्कि अपने कार्यों से यह भी जता दिया है कि बेटियां भी गाँव, समाज की तस्वीर बदल सकतीं हैं।

गॉव की बेटी मोना कौरव द्वारा सरपंच के रूप में कराए गए विकास कार्यों से जाना जाता है। जिसने अपनी सक्रियता से न केवल सामाजिक रूढिया तोड़ी हैं बल्कि अपने कार्यों से यह भी जता दिया है कि बेटियां भी गाँव, समाज की तस्वीर बदल सकतीं हैं। गाँव में वाटिका जैसी सजी गोशाला का कार्य हो या पंचायत भवन, आंगनवाड़ी, स्कूल, तालाब, मुक्तिधाम, पेयजल व्यवस्था और सड़कों के कार्य, हर कार्य युवा सरपंच मोना के जज्बे, सक्रियता को प्रमाणित करते हैं। मोना

सड़ूमर में सरपंच मोना कौरव के प्रयासों का नतीजा ये है की गाँव की महिलाएं अब परदे से बाहर निकलकर विकास कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहीं हैं।

के कार्यो और सक्रियता के कारण ही मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ भी उन्हें सराहते है।
गाँव को जल सरंक्षण का संदेश, 185 साल पुराने तालाब का जीर्णोद्धार

मोना की पहल पर लगातार गिरते भू-जल स्तर को रोकने जब ग्रामीणों ने जलसरंक्षण के लिए कार्य किया तो अब करीब ढाई दशक से गांव का जो तालाब सूखा व कचरे से भरा रहता था वहां गांव के बच्चे तैराकी सीख रहे है। गांव के हेंडपंप, बोर भी बीते वर्षो की तरह अब गर्मी के शुरूआती दौर में ही दम नहीं तोड़ते, नहाने के लिए बच्चे तो बच्चे, बुर्जुग और महिलाएं भी तालाब पहुंच जाते हैं। जनपद चांवरपाठा के ग्राम सड़ूमर के करीब पौने 4 एकड़ के तालाब में न केवल 10-15 फुट पानी भरा है बल्कि तालाब पर पक्का घाट, लाइट, रैलिंग भी लग गई है। ग्रामीण बताते है कि तीन-चार पहले गांव में 150 से 200- 250 फुट तक पानी मिल पाता था। गर्मी में पानी की ज्यादा मुश्किल होती थी। तालाब कचरे से भरा रहता था तो बरसाती पानी भी नहीं रुकता था अब हालात सुधर रहे है। ग्राम पंचायत की युवा सरपंच मोना कौरव की पहल और ग्रामीणों की जागरूकता ने गांव के प्राचीन तालाब को गांव की पहचान बना दिया है। सरपंच मोना कहतीं हैं कि तालाब कई वर्षो तक सूखा रहा जिससे यहां जलीय पौधे अभी भी हो रहे है। तालाब में मछलियां छोड़ी गईं हैं जिससे उनकी सहायता से पानी को स्वच्छ रखने के साथ ही जलीय पौधो की जड़ को समाप्त किया जा सके। यहां पंचायत ने पार्क विकसित करने की योजना भी बनाई।

उपलब्धियों से भरा है युवा सरपंच मोना का सफर

गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में विस अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति से सम्मान प्राप्त करतीं सरपंच मोना कौरव।

युवा सरपंच मोना कौरव का सरपंच बनने के बाद का सामाजिक राजनीतिक सफर अनेक उपलब्धियों से भरा है। ग्राम पंचायत सड़ूमर जनपद चांवरपाठा जिला नरसिंहपुर, विधानसभा क्षेत्र 120-तेंदूखेड़ा की सरपंच मोना एमएससी फुड एंड न्यूट्रिशियन हैं जो एलएलबी कर रहीं हैं। अपने गांव सड़ूमर की पहली उच्च शिक्षित युवती मोना कौरव वर्ष 2015 में सरपंच निर्वाचित हुईं। उन्होंने 108 मतों से तीन प्रतिद्धंद्धियों को मात दी। गांव में समाधान अभियान, कुपोषण से मुक्ति, दुर्गोत्सव योजना, सरपंच पाठशाला

, गोबर गैस के निर्माण कार्य कराए, बच्चो युवाओं की जागरूकता आदि के कार्यक्रम शुरू किए। अब तक के कार्यकाल में उन्होंने करोड़ो रूपये की लागत से गाँव मे शासन की योजनाओं से कार्य कराए हैं, वह गाँव के विकास के लिए भोपाल दिल्ली जाकर भी जनप्रतिनिधियों से मिलीं और राशि मंजूर कराई। मोना ने सरपंच बनते ही गांव के 13 कुपोषित बच्चों को गोद लिया था। वे गांव की एक निशक्त बालिका सोनम कौरव की पढ़ाई में भी सहयोग कर रहीं हैं। मोना ने अपने गांव के 185 वर्ष पुराने तालाब का जीर्णोद्धार कराया।

सम्मान और उपलब्धि

 शिक्षा के लिए किया ऐसा संघर्ष की कायम कर दी मिसाल

नरसिंहपुर जिले का सडूमर गांव जहां गांव की बेटियों को गांव के बाहर जाकर पढ़ाई करने की बात सोचना भी लोगो को मुश्किल था। उस गांव की एक बेटी ने जब आठवीं के बाद पढ़ने बाहर जाने की जिद की और मामा का साथ मिला तो आज वही बेटी न केवल गांव की सरपंच है बल्कि वह दूसरी बेटियों के लिए भी मिसाल बन चुकीं हैं।

सड़ूमर गांव में बेटियों की पढ़ाई आठवीं के बाद बंद हो जाती थी। लोग नहीं चाहते थे कि उनकी बेटिया दूसरे गांव जाकर पढ़ाई करें। लेकिन वर्ष 2011-12 में जब ननिहाल में रहते हुए एक बेटी मोना कौरव ने आगे पढ़ने की जिद की और उनके मामा राव विक्रम सिंह ने उसे हौसला देते हुए गांव से 7-8 किमी दूर कौड़िया कन्या स्कूल में कक्षा नवमीं में दाखिला दिला दिया। जबकि मोना के साथ पढ़ने वाली अन्य लड़कियां घर बैठ गईं। गांव सेे रोज स्कूल आने-जाने उस दौरान आवागमन के साधनों का अभाव था और रास्ते में एक नाला भी पुल विहीन था तो मोना के सामने बाधाएं भी पग-पग पर थीं। मोना बतातीं हैं कि अपने यहां कार्य करने वाले रिश्ते के मामा राधे ठाकुर के साथ साइकिल स्कूल जाने सुबह 10 बजे घर से निकलतीं, कई बार नाले में पानी ज्यादा होने से रोड पर बैठकर पानी कम होने का इंतजार किया, मामा के कांधे पर बैठकर नाला पार किया और स्कूल पहुंचे, फिर शाम को घर वापसी में यही बाधाएं आईं। जब मेरा स्कूल आना-जाना होने लगा तो गांव की 4 लड़कियों ने और स्कूल में प्रवेश करा लिया,  बाद में साइकिल वितरण योजना से साइकिल मिली तो पांचों लड़कियां साइकिल से आने जाने लगीं। मोना ने बताया कि कौड़िया में 10वीं तक की पढ़ाई के बाद फिर गाडरवारा में पढ़ाई की और बाद में भोपाल के नूतन कॉलेज में प्रवेश लिया जहां से एमएससी फुड एंड न्यूट्रीशियन का कोर्स किया। बचपन और पढ़ाई के दौरान गांव की जो हालत देखी उसकी पीड़ा भी मन में रही, गांव में विकास कार्य करने की बात सोची और लोगों को साथ मिला तो सरपंच बनी। मोना के मामा राव विक्रम सिंह कहते हैं कि जब मोना को बाहर पढ़ाने के संबंध में हमनें मोना की सहेलियों के परिजनों से बात की तो उन्होंनेे साफ कह दिया कि हम बेटियों को बाहर नहीं भेजेगें। लेेकिन हमारी और मोना की इच्छा थी कि उसकी पढ़ाई आगे हो तो हमनें हर परिस्थिति सेे लड़ने का फैसला कर लिया, आज उसके सुखद परिण्ााम बेटियों का भविष्य संवार रहे हैं। आज गांव से 50 से ज्  यादा बेटियां गांव के बाहर स्कूल-कॉलेजों में पढ़ रहीं हैं।